बृहदारण्यक परिषद | Brihadaranyaka Panishad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
21 MB
कुल पष्ठ :
634
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about हंसराज बच्छराज नाहटा - Hansraj Bachchharaj Nahata
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)वह अश्वके पीछे रक्खाजाता है, इसका ॒ उत्पत्तिस्थान
पश्चिम सुद्र है । पे मिसा सायके छुषणं और रजते ॥
| दोनों पान्न अश्वके आगे और पीचे জানি ই । यह ।
अश्व हथ जातिका होकर देवताओंको सबारी देता था, |
घाजी जातिका होकर হাল্ঘনীক্কী, আভা সালিজ্া ীক্ষহ |
असुरोको और अश्व जातिका होकर भनुष्पोंको सबारी |
देता धा । ससुद्ररूप परमात्मा इसका धन्धनस्थाने है । |
ओऔर ससुद्ररूप परमात्मा ही इसका उत्पत्ति सथान द । |
इसप्रकार इस अश्वी उत्पतति, स्थिति चौर लयस्थान |
परभशुद्ध हैं ॥ २॥ | |
एति प्रथमाध्यायस्य प्रधमं व्र्य्ं समाम् । - 6
अब अश्वमेधके उपयोगी अग्निकी उत्पत्ति कहते हैं- ॥
555 |
शनयाऽ्शनायया हि खल्युस्तन्मनांऽरुताः्स- |
- मी स्थागिति। सोध्वैन्नचरतस्पाचेत आपो-
शजायन्तावेते वे में कृपभू[दिति तदेवाकैस्या- ।
फैले कह वा असम भवति वे एयमेतदर्क: ।
स्पा्कत्व वेद ॥ १ ॥ . 1
मर्करय ओर पदाधे- ( हह ) यहाँ ( श्रे) पदले ( किन ) |
कुछ मी ( नेव ) नहीं ( मासीत् ) या ( अशनायया. |
¶ दत्युना, एव › भोजन करनेकी इच्चोरूप জুন दी!
( रदष् ) यह् ( आवुततम् ) श्राञ्छादिति ( आसीत ) था. !
( हि) क्योंकि (अशनाया ) मोजनकी इच्छा ( मत्युः ) ॥
। | বৃ है € নত ) লহ € आंत्मन्ची. ) अन्तःकरणवालां †
1 (स्याम्) होऊ ( इति ) ऐसा विचार कर ( सन)) পন বি (নট जन्त | |
শা সহজ,
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