दानदर्पण-ब्राह्मणअर्पण | Dandarpan-Brahman Arpan
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
266
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“झ्याछक--भक्त बने दिख़लाने को मारा सव्काते नहा करके !
অর্থ हजारा करें इशारा माथे तिरूक लूमाकर के ॥
पर नारी को प्रेम से घूरें पूरण आँख घुमाकरके 1
कहें देखने वाले यह हैं बड़े मक्त ढिग आ करके-इत्यादि ॥ -
. तीथ्थों में बहुधा पूजारि भी होते हैं | पर पूजारि कहते हैं
দুলা क् अरि धित सतक्तम के अत्रा का अथात् उन का जां पत्थर
और मिट्टी आदि घातुओं की मरतियों को चटकीली, मटकीछी, भड-
कोटी; चघमकीली[ झलक्नीली बना ठना आप ठग के নুন লল ठन के
बिचारे निद्लुद्धि मूड अनाथों का माऊ मार कर मौज करते हों और---
_तालेवर आंवें तिन्हें निकट बुछावैं, और नगद जो चढ़ावें
तिन्हें मगद खिलांवें हैं । गरीब लोग आंबैं शिर ठाकुर को
नवावें, खाकी चरणामृृत प्यांवें पात तुछसी के चबवांवें है ॥
घंटा बजांवें गुठा खाकुर को दिखावे, और भोग जो कग
सो अछूग सरकायैं दें | पर नारी आंवें परकम्मा में गिरावें
मार दौना भर झकावें ते एजारी जी कहांवें हैं |
प्यारे तीथे यातियों ! तीर्थो्मे जाकर कभी कोई छाम नहीं उठा
सक्ता | दोखिये ! श्रीमानवर चतुर चतुर्वेशि प.ण्डत श्री १०४८ घूजीसिंह
जी महाराज रेप मथुरा अभी सरे ती्थों में भ्रमण करके आयेहें |
आपने वहांपर ( तीर्थों में ) जो जो दुःख सहन किये - कष्ट उठाये
वह सब कह सुनाये | तीथोंके पुजारि पुरोहितोंके दुराचारों का इत्तान्त
भी खूब कह बताया भिसकों सुनकर सुनने वालों के হালাজ্ন खड़ हा
गये। मैं महाराज की दुःख भरी सारी कथा को यहां पर स्थानामाव कं
कारण नहीं लिख सक्ता | परन्तु हां | मंहाराज ने अपने सच्च उ्त्तेस्वर
से जो रुक भजन गरायाथा उसे यहां पर पाठकों के छिये किखेंदेताहूं---
भजन-नाहें मतहूब कुछ ससारसे । सद्धम १ मेरे मन माना 1
. कारी गया भाग भरमाचा ! जगन्नाथ का. द्रन् पाया ।
रामेदवर् काची ही आया । करि पाया नहीं {ठकाना ॥९१॥
गोदावरे कावेरी - न्हाया 1 पचवटाचट क्म वासे छाया |
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