जिनपूजाधिकार मीमांसा | Jinpoojadhikar-Mimansa

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Jinpoojadhikar-Mimansa by बाबू जुगलकिशोर मुख्तार - Babu Jugalkishore Mukhtar

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

Author Image Avatar

जैनोलॉजी में शोध करने के लिए आदर्श रूप से समर्पित एक महान व्यक्ति पं. जुगलकिशोर जैन मुख्तार “युगवीर” का जन्म सरसावा, जिला सहारनपुर (उत्तर प्रदेश) में हुआ था। पंडित जुगल किशोर जैन मुख्तार जी के पिता का नाम श्री नाथूमल जैन “चौधरी” और माता का नाम श्रीमती भुई देवी जैन था। पं जुगल किशोर जैन मुख्तार जी की दादी का नाम रामीबाई जी जैन व दादा का नाम सुंदरलाल जी जैन था ।
इनकी दो पुत्रिया थी । जिनका नाम सन्मति जैन और विद्यावती जैन था।

पंडित जुगलकिशोर जैन “मुख्तार” जी जैन(अग्रवाल) परिवार में पैदा हुए थे। इनका जन्म मंगसीर शुक्ला 11, संवत 1934 (16 दिसम्बर 1877) में हुआ था।
इनको प्रारंभिक शिक्षा उर्दू और फारस

Read More About Acharya Jugal Kishor JainMukhtar'

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
११ चाहे बीसा हो या दस्सा और चाहे ब्राह्मण, क्षन्निय, वैद्य हो या चुद्‌, सबको पूजन करना चाहिये । सभी गृहस्थ जनी है, सभी श्रावक है, अतः. सभी पूजनके अधिकारी ह । श्रीतीर्थकर भगवानके अथौत्‌ जिस अरं त परमात्माकी मूर्ति बनाकर हम पूजते ই उसके समवसरणम भी, क्या स्री, क्या पुरुष, क्या धती, क्या अती, क्या ऊच जर क्या नीच, सभी प्रकारके मजुप्य जाकर साक्षात्‌ भगवानका पूजनं करते है । जर मयुष्य दी नहीं, समवसरणमे पंचेन्द्रिय तिर्य॑च तक भी जाते है-समवसरणकी बारह सभाओंमें उनकी भी एक सभा होती है-वे भी अपनी शक्तिके अयुसार जिनदेवका पूजन करते हें । पूजन- फलप्रासिके विपयमें एक मेंडककी कथा सर्वत्र जेनश्नाखोमे प्रसिद्ध ह । पुण्यास्रवकथाकोश, भहावीरपुराण, धर्मसंग्रहभ्राचकाचार आदि अनेक अंथोंमं यह कथा विस्तारके साथ लिखी है और बहुतसे अंथोंमें इसका निम्नलिखित प्रकारसे उल्लेख मात्र किया है। यथाः--- रतरकरण्डश्रावकाचारसे, “अदेचरणसपर्यां महालुभावं महात्मनामवदत्‌ । मेकः प्रमोदमत्तः इुसुमेनैकेन राजगृहे ।॥” १२० ॥ सागरधममाश्ितर्मे, “यथाशक्ति यजेताहेदेव॑ नित्ममहादिभिः । संकरपतो5र्पित॑ य्टा भेकव॒त्खमेहीयते ॥” २-२४ ॥ कथाका सारांश यह है कि जिस समय राजगशह नगरमें विपुलाचरूू पर्वतपर हमारे अन्तिम तीर्थकर श्री महावीर स्वामीका বা आया और उसके सुसमाचारसे हर्पोल्लसित होकर महाराजा श्रेणिक जारन॑दभेरी चजवाते हुए परिजन और पुरजन सहित श्रीवीरजिनेन्द्रकी पूजा ओर बन्द नाको. चरे, उससमय एक मैडक भी, जो नागद्तक्त श्रेष्ठीकी बावड़ीमें रहता था ओर जिसको अपनी पूवैजन्मकी सी भवदत्ताको देखकर जा-




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now