सम्यक्त्व कौमुदी | Samyaktva Koumudi

Samyaktva Koumudi  by तुलसीराम - TULSIRAM

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुयोधन राजाकी कथा । १३ পিপিপি कुछ दिनोंके लिए राजाका मान देकर मैंने यह बड़ा अनथ किया । नीतिकारोंने वहुत ठीक कहा है, जो राजा मंत्री आदि नोकरोंके हाथर्म राज्यका भार दे स्वच्छन्द होकर आनन्द उठाते हैं, वे विल्लियोंसे दूधके घडोंकी रखवाढी : करवाना चाहते हैं । अर्थात्‌ नोकरोंके हाथमें राज्य सौंपनां ठीक ऐसा ही है जेसे विलछीसे दर्धकी रखवाढी कराना । जो राजा ऐसा करते हैं वे सचमुच मूखे हैं यमदंडसे सव भ्रजाजन प्रसन्न हैं, इस बातसे राजाने अपना अपमान तो समझा पर यह वात उसने किसीसे न कही। राजाका ऐसा करना ठीक ही था। क्योंकि अपने धनका नाश, मनका संताप, घरकी घुराईयां, ठगाई और अपने अपमा- नको समझदार कभी प्रगठ नहीं कर' किसी तरह यमदंडने राजाके दुष्ट अभिप्रायोंकों जान कर मनमें विचारा कि उस समय मेंने राज्यका भार अपने ऊपर लेकर अच्छा काम नहीं किया। यह बात सच है कि राजा अपनी दुष्ठताको नहीं छोड़ता | यह रोकोक्ति भी है कि राजा किसीके वशमें नहीं होता । नीतिकारोंने भी कहा फ जिस तरह कोएमं पवित्रता, जुजारीमे सत्यता, नपुंसकम प, मदिरा पीनेवाोमे तत्वंपिचारः सपमे क्षमा तथा ख़ियोंम कामंशांति, न देखी गई न सुनी गई उसी तरह राजा भी न किसीका मित्र सुना गया; न देखा गया । कुछ दिनोंके वाद राजाने मंत्री और - पुरोहितको




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