चन्द्र गुप्त | Chandra Gupt
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
278
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)११
९.
इसी क्पिली-कानन में मैौव्यं लोग प्रयना दयता सस्य सतन्त्रता
से संचालित करते थे, ओर ये छत्रिय ये, जता क्रि महावंश के इस
अवतरण से सिद्ध होता है “मोरियानं खतियानं बंसजात सिरीधर ।
चंदगुत्तो सिपंज्जतं चागफो तरद्मणोत॒तो” दिन्दू नारककार विशाखदत्त ने
चंद्रु दो. प्रायः वृपल कहकर सम्बोधित कराया है, इससे কক
हिन्दू-हाल की मनोबृत्ति दी ध्वनित होती है। वस्तुतः दृपल शब्द
से तो उनका झत्रिवत्त श्रीर भी प्रमाणित होता है, स्थो
एनकैस्त क्रियालोपादिमाः सत्रियजातयः
वृपलप्वं गतां लोके ब्राह्मएानामदशंनात् ।
से यही मालूम द्ोता है कि जो क्षत्रिय लोग वेदिक क्रिथाश्रो से उदासीन
हो जाते थे, उन्हें घार्मिक दृष्टि से वृपलत् प्राप्त होता था। वस्ठुतः वे
जाति से ज्त्रिय थे | स्ववं अशोक मौच्य अपने को क्षत्रिय कहता था ।
यह प्रवाद भी अधिकता से प्रचलित है कि मौय्य-वंश मुरा नाम की
शद्वा से चला है और चंद्रगुण्त उसका पुत्र था। यह भी कदा जानाः
है कि चंद्रगुप्त मौय्य शूद्धा मुरा से उत्पन्न हुआ नन्द ही का पुत्र था |
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