सिन्धु सभ्यता | Sindhu Sabhyata

Sindhu Sabhyata by डॉ. किरण कुमार थपल्याल - Dr. Kiran Kumar Thapalayal

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सिधघु सभ्यता का चिस्तार एवं महत्वपूर्ण स्थलों का संश्रिप्त परिचय 7 पहुंची तथापि डेल्स को केधन ड्रिलिंग द्वारा नीचे के स्तरों के विषय में कुछ महत्त्वपूर्ण सूचनाएं संकलित करने में सफलता मिली और अप्रयुक्ता धरती तक उत्खनन किया जा सका। इस क्षेत्र में आवास स्तरों की मोटाई लगभग 6 8 मीटर पायी गयी। इसमें से नीचे का भाग जो लगभग पूरे का तिहाई है जलमर्न है। इन जलमग्न स्तरों से जो मृदुभाण्ड व अन्य वस्तुएं मिली हैं वे पुराविषों के अनुसार वलूचिस्तान की संस्कृतियों के मृदूभाण्डों से बहुत कुछ मिलती-जुलती हैं। वे उसी तरह की हैं जैसी की हड़प्पा में सुरक्षात्मक प्राचीर के निर्माण से पूर्व काल में पाई गयी हैं। चन्हुदड़ो- चन्हुदड़ो नामक स्थल मेहेंजोदड़ों से दक्षिण-पूर्व दिशा में लगभग 128.75 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। सिंधु नदी यहाँ से अब 21 किमी. दूरी पर बहती है किन्तु सिंधु सभ्यता के काल में वह इसके विल्कुल समीप बहती थी। इस स्थान पर मूलतः एक ही बड़ा टीला था किन्तु वर्षा आतप और वात से मिलकर इसे तीन खंडों में वांट दिया है। ननी गोपाल मजुमदार ने इस स्थल को 1931 में ढूँढा था और तीन सप्ताह तक इसका उत्खनन कराया। फिर मकाइ ने 1935 में इसका उत्खनन किया । चन्हुदड़ी में जलस्तर प्रारंभ होने तक ही उत्खनन किया जा सका। उसके नीघे जो अवशेष हैं उनके बारे में कुछ भी पता नहीं है। उत्खनन में सबसे नीचे सिंधु संस्कृति उसके बाद झुकर संस्कृति और उसके वाद झांगर संस्कृति के अवशेष मिले हैं । इन तीनों संस्कृतियों के बीच कितना काल-व्यवधान रहा यह कहना कठिन है। सिधु संस्कृति के तीन निर्माण-चरण पाये गये और एक निर्माण-चरण व॑ दूसरे निर्माण-चरण के मध्य एक बाढ़-सूचक स्तर मिला है। प्रत्येक चरण में जो पुनर्निमाण हुआ उसमें पूर्व-चरण में अपनायी गयी भवन-निर्माण शैली व रूपरेखा का अनुसरण नहीं किया गया। सिंधु सभ्यता के संदर्भ में फ्राप्त बर्तन मुद्रा ताश्र उपकरण मनके बाट-बटखरे आदि हड़पा और मोहेंजोदड़ों से प्राप्त इसी तरह की वस्तुओं से मिलते-जुलते हैं । पंजाब हड़प्पा- हड़प्पा का टीला मोण्टगोमरी जिले पाकिस्तान में इसी नाम के कस्बे से पंद्रह मील पश्चिम-दक्षिण-पश्चिम में रावी नदी के बायें किनारे पर स्थित है। आज नदी इस स्थल से लगभग साढ़े नौ किलोमीटर दूर बहती है किन्तु सिंधु सभ्यता के काल में नदी तर अधिक निकट रहा होगा और अधिक वर्षा होने पर यह क्षेत्र हो जाता रहा होगा। 1856 ई. में लाहौर और




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