ज़िन्दगी की लहरें | Jindagi Ki Lahren
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
202
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जिन्दगी की लहरें ७
पैसे से श्रच्छी-प्रच्छी वस्तुएँ खरीदते श्लौर वह दुग्ुर-मुगुर
निहारता, मुंह में पाती श्राता, पर करता वंया 1 एक दिन
उसने श्रपने साथी लड़के से पूछा-तुम हमेशा इतने पैसे कहां
से लाते हो, तुम्हे कोन देता है पैसे ? साथी ने मुस्कराते हुए
फहा--इसमे पूछने की बात वया है, पिता जी देते हैं ।
लड़का घर गया, तुतलाती हुई जबान से बोला, माँ!
मेरे पिताजी कहाँ हैं ? स्कूल के सभी विद्याथियो को उनके
पिताजी खाने के लिए पैसा देते हैं। बता माँ वो कहां हैं ? में
उनसे पैसे माँगूंगा ? ~
गरीब विधवा माँ ने ज्यों ही यह सुना उसकी करुणा-
विगलित शरो से टप-टप श्रम बरसने लगे। सिसकियाँ उभरने
लगी। अतीत की सारी स्मृतियाँ चलचितन्र की तरह उसके
सामने श्राने लगी । जब वह गर्भ मे था तो इसके पिता बीमार
हुए थे श्रौर बीमार भी ऐसे हुए कि घर बेच दिया, श्राभूषण
बेच दिये, जो कुछ भी था वह खर्च कर डाला, ओऔषधियाँ दी,
पृथ्य का भी पूरा ध्यान रखा, पर वे बच नही सके'” ।
लड़के मे बीच मे ही रोक कर कहा, माँ ' रोशो मत, तुम
बयो रोती हो ; तुम मुझे बताश्नो पिताजी कहाँ हैं ?
दु.खिया विधवा ने रोते-रोते कहा--'तेरे पिताजी ऊपर
गये हैं, श्राकाश मे ।' वह छोटा श्रौर श्रवो बालक सम नही
सका । उसने चट से एक पत्र लिखा--
पूज्य पिताजी, प्रणाम ! मां रोती हुई कहती है कि
पिताजी ऊपर गये ह 1 श्रव जल्दी नीचे श्राश्रो । स्कूल के सभी
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