ओंकार : एक अनुचिन्तन | Onkar : Ek Anuchintan
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
128
श्रेणी :
हमें इस पुस्तक की श्रेणी ज्ञात नहीं है |आप कमेन्ट में श्रेणी सुझा सकते हैं |
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about देवेन्द्रमुनि शास्त्री - Devendramuni Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)111
১১০৫৬]
धायं जाति के साहित्य में ॐ एक धसाधारण अद ह + भना
से प्रसेस्य-असंस्य साथक, मुनि झौर योगी इस, :परस মারল নাগ কা
ध्यान करते झा रहे हैं। इस मंत्रराज में अन्त गरिमा अनिकि/क्रै।त
शरीर की स्थिति भौर पुशथ्टि के लिए जैसे ग्राहर हो गि
आवश्यकता होतो है, उसी प्रकार पातमा में तिद्धिति शनिः
आविर्भाव और विकास के सिए “5४ का ध्यान अनिवार्य मानो गया है ।
यह भेवरांज “39 समस्त आध्यासित्क विद्या का स्त्रोत भौर यौगे- ই
का पुनीत केन्द्र है। भ जाने कितने साधकों मे “5%!' के '
रहस्य को भषित करके कृतकृत्यता प्रास कौ है 1 ४
खघुतम प्रद ञं विद्व संस्कृति की मौलिक एकता की कप
है भौर वह स्पष्ट रूप से इंगित करता हैं कि संस्कृति का भं कीति
शक्क ही है, भले ही बिभिन्न देशों मौर कालो में उसने कितते हीं भनोते
अनोखे रूप धारण /किए हों ।
हम भागे चल कर देखेंगे कि इस लघुकाय,पद में किस प्रकार
समग्र विश्व भौर समस्त मतों एवं पथो -के महनीष देवों का समकक्ष
होता है । '3+' को प्र॒श्याम करते हुए कहा, ग्रया है नफ
श्रोभित्येकासरं बहा, वाकं परमेष्टिसंः १
' सिदथक्रस्य सद्वीजं, सव॑दा प्ररामाम्यहेष्, এ
২৯ एक भ्रक्षरवाला बहा है या एक मात झक्षर-अविनश्वर अदा है
वह परमेष्ठी का शाचक भौर सिद्धाबक्र का बीज है। ओ रे शवा
प्रणाम कर्ताहं ।
आविर क अत्येकु-भत्मकथक में अंधरोज़ के अति: आपेनी गहरी
কার भित की है +-यास्तव में झात्मिक शक्तियों को उद्दुद्ध करने के
लिए ॐ का হান, विन्दन प्नौर भगत अ्रतीव उपयोगी है।
User Reviews
No Reviews | Add Yours...