स्याद्वादमञ्जरी | Sayaddhad Manjri

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Sayaddhad Manjri  by जगदीशचन्द्र जैनेन - Jagdishchandra Jainen

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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+$ ,. प्र और अंगकार ४ এ केकेति सिमिता: से को अवेधाही धियो दाक छीर शौर, मेद धूते धिकार भारि दर्षी 'की शोकतेक़ों घोषणा कराई और अमबर्मके सिद्धांदोंका अ्रिकाधिक प्रचार किया। जाँ विद्या्सोके समृप्र ये और अपी असामान्य विश्या-बैमपफे कारण कलिकाकसव्शकेजा র্‌ টির थे । भल्लिधेंग हेमचस्का पृज्य दृष्टिसि स्मरण करते हैं और उन्हें चार विद्याओं सबधी साहित्यके करने সাহার श्रह्माकी उपमा देते हैं। सिशहैधशक्दानुशासनके अतिरिक्त हेभबद्वने तर्क साहित्य > ऋरि योग नोति आदि विधिष विधयोपर अनेक प्रधोकी रचना करके जन साहित्यको पत्कवित कनामा । 77 क॥ जाता है कि कुछ मिलाकर हमशन्द्रने साढ़ तोम करोड़ इोकोंकोी' रचना की है। हेमचखके मुख्य ग्रथ किम अकाः 2--- १ विद्ध्हैमकछस्शानुशाषने ( अ ) अथम सात अध्यायो म संहकृत व्याकरण ४ ( आ ) जाठवें अध्याग्रम प्राकृत एवं अपभ्रश् भ्याकरण २ हभाश्रगमहाकाब्य ( माषक्ृत भट्टिकान्य के जादर्श पर ) {अ ) सस्त इपाथ्चथ ( आ ) प्रात द्वाव १ शोष {अ ) अभिषासचितामणि-सवृत्ति ( हैमोलाममाला ) (भा ) अनेकासंसग्रह (इ) देशोभाममाला-सबृत्ति ( रगणावक्ति ) ( ई ) निघयशेष ४ अलकार काव्यानुकासन-उवृत्ति ५ कद छदोनुशासत-सवृत्ति ছ বন (আজ) प्रमाममीमातसा [ बपूर्णं ] ( बा ) अस्योगव्यवच्छेदिका ( स्पाद्ादमंजरी ) (इ) अयोगव्यवच्छेदिका ७ योग योगशास्त्र-सबृत्ति ( जध्यात्मोपतिषद्‌ ) ८ स्वति बोतरागस्तोत्र ९ अरित विषष्टिशलाकापुरुचरित इन प्रस्थोंके अतिरिक्त हेमचच्द्रमे और भी ग्रंथीका निर्माण किया है। हेम॑च द्र भारतके एक दैदीप्यभान राम भे उनके बिता जैन साहित्य ही नही गुजरातका साहित्य शनन्‍्य समझा आयगा । अन्ययोग ओर अयोगव्यवच्छेद द्ार्त्रिशिकायें दानिक बिच्रारोंको सस्कृत प्मोंम प्रस्तुत करनेकी पद्धति भारतवर्षमें बहुत समयसे चली जाती है । इषमा भारतीय साहित्यमें सर्वप्रथम विज्ञानवादी वोद्ध आचार्य बसुबधुद्धरा विशासवादकी सिद्धिफे छिये बीत दलोकप्रमाण পিহিকা আহ জীভ হভীকগসাণা त्रेशिकाकी रचना देखनेम आती है। जैन साहित्यमे सर्वप्रथम सुप्रसिद्ध जैन दाशमनिक घिद्सेन दिवाकरले दातरिदादद्रातविशिकाओंकी रचता की । हरि मदमे भी विश्च सिविशिकाओंकी लिखा है । हेमचस्द्रनें सिद्धसेनकी द्वाविशिकाओंके अनुकरण पर सरल और माभिक भाषामें अभ्यक्ीगव्यवच्छेद और अयोगव्यवच्छेद नामकी दो द्वार्विशिकार्जोको “चना की है । सन्न --------------------- ~ ई एक धिद्धानूने इस ग्याकरणको पशसा निम्न द्कोकसे की थी- সান सवृणु प्राणिनीअलपित काततककथा वृधा मा क्षीं कटशाक्रटायनेवच द्रण चाण क्रिमि । कि क्रष्ठाभरणादिभिजठरयत्यात्साममन्यैरपि আজব यदि तावदर्धभभुरा लीशिद्हेमोक्तम 1 जन साहित्यसों इतिहास पृ १९४ । |, विशेषके लिये देखिये प्रकाशेत जिभाव भारत सरकार नई दिलतो हार पंकाशित होनेबाली 'भारतके ऑॉल्कृतिक अंग्रंदृंत' पुस्तक लेशक का आचार्य हेमंत नामेक निर्व |




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