श्री जैन सिद्धान्त प्रवेशिका | Shree Jain Siddhant Praveshika
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रस्तावना 15
डॉ हुकुमचन्द भारिल्ल द्वारा निर्देशित ओर पण्डित रतनचन्द भारिल्ल
के प्राचार्यत्व मे सञ्चालित श्री टोडरमल दिगम्बर जैन सिद्धान्त
प्रहाविद्यालय, तीर्ध्ाम मङ्गलायतन मे सञ्चालित भगवान श्री
आदिनाथ विद्यानिकेतन ओर बँसवाडा मे सञ्चालित श्री अकलङ्कदेव
शिक्षण संस्थान भी इसी श्रृडुला की कडियाँ है । जहो से सैकडो कौ
सख्या मे विद्वान् तैयार हो रहे है ओर हजारो की सख्या मे निकट भविष्य मे
तैयार होगे ।
जेन साहित्य के अध्ययन हेतु उन्होने श्री भारतवर्षीय दिगम्बर जैन
परीक्षालय की स्थापना भी की ओर निस्वार्थ भावना से उन्होने शिक्षा.
साहित्य ओर सास्कृतिक चेतना को जागृत करने मे अपनी महती भूमिका
अदा की । उन्होने खुले दिल से जैनधर्म ओर दर्शन की प्रभावना हेतु देशभर मे
स्वाध्याय कौ प्रवृत्ति चलाकर प्रचार-प्रसार किया।
उनकी बुद्धिमत्ता ओर धर्म के प्रति रुझान को देखकर जैन समाज ने
उन्हे अनेक उपाधियों से सम्मानित किया। जैसे - स्याद्रादवारिधि,
वादीगजकसरी, न्यायवाचस्पति आदि । जीवन मे आपने अनेक आर्यसमाजी
तथा अन्य विदानो को शास्त्रार्थ मे परास्त किया । श्री गोपालदासजी ने अपने
साहित्यिक जीवन की शुरुआत जैनमित्र नामक पाक्षिक पत्रिका से की, जो
आज भी भारत मे गुजरात के सूरत नामक शहर से प्रकाशित होती है ।
पण्डित गोपालदासजी ने जैनदर्शन के सैद्धान्तिक विषयों को समाहित
करते हुए अनेक रचनाये लिखी, इनमे भी उन्होने अनेक सैद्धान्तिक विषयो
का समावेश अत्यन्त सहज, सरल शैली मे किया। उनकी प्रमुख पुस्तको मे
श्री जैन सिद्धान्त प्रवेशिका और श्री जैन सिद्धान्त दर्पण है। आपने
बहुचर्चित सुशीला उपन्यास भी तत्कालीन नवयुवको में चेतना जागृत करने
के उदेश्य से लिखा था, जो कि धर्मविमुख हो रहे थे।
इनके अलावा भी आपके द्वारा लिखित कुछ लेख है । जैसे - जैन
ज्योग्राफौ (4५81 06001201), जैन सिद्धान्त (3॥ ?॥॥050919)
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