श्री जवाहर-किरणावली | Shri Jawahar Kirnawali

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Shri Jawahar Kirnawali by पं. शोभाचंद्र जी भारिल्ल - Pt. Shobha Chandra JI Bharilla

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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-२३-- नीय है। संबत्‌ १६८४, ६८, और ६६ में भी आपको पूज्यश्री की सेवा का महत्वपूर्ण लाभ ग्राप्र हुआ है । खेद है कि वि. सं. १६६६ में आप लकबा से ग्रम्त हो गये हैं श्रौर चलने-फिरने मे असमर्थं हँ । फिर भी भक्ति के श्राधिक्यके कारण आप प्रतिदिन पूज्यश्री तथां संतों के दश्शन करने के लिए खास तौर पर बनवाई गई गाड़ी में किसी प्रकार जाते हैं, सामायिक करते हैं और व्याख्यान सुनते हैं। जब अनेक तन्दुरुस्त लोग धर्मक्रिया में प्रमादशील बने रहत हैं तब सेठ सा. की यह धमंभक्ति देखकर हृदय से बाह-बाह !' निकल पड़ता है ) सेठ सा. की धर्मपत्नी का जब स्वगंवास हुआ, तब आपकी उम्र सिर्फ ३६ वर्ष की थी। धन की बहुलता और यौवनकाल होने पर भी आपने दूसरा विवाह नदी करिया श्रौर पूणं त्रह्मचयं पालन करने की भीष्म प्रतिज्ञा ले ली। जहाँ ६० ब्ष के वृद काम-वासना के गुलाम बने रहते हैं वहाँ सेठ सा. का भर जवानी में पूर्ण ब्रह्मचये-पालन निस्सन्देह एक बहुत ऊँचा आदर्श है और इससे उनके जीवन की उच्चता का अनुमान लगाया जा सकता है। आपके ब्रह्मचये का ही यह्‌ प्रताप है कि लकवा से दीघे काल से ग्रस्त होने पर भी आप अब तक धमेध्यान करते रहते हैं । सेठ बहादुरमलजी सा. को साहित्य से बहुत प्रेम है। आपने अपनी ओर से कई पुस्तक प्रकाशित की हैं और कइयों के प्रकाशन




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