कुन्दकुन्दाचार्य के तीन रत्न | Kundkundacharya Ke Teen ratn
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
116
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)१४ कुन्दकुन्दाचायेके तीन रत्न
करते है कि न्तकथा ( प्रसिद्ध-कथा-न्याय ) के अनुसार बुन्दङन्दाचायं
स्वय पूर्व विदेहमें गये थे और श्रीसीमन्धर स्वामीके पाससे विद्या सीखकर
आये थे। श्रवणबेलगोलके शिलालेखोमे भी, जिनका अधिकाश भाग
बारहवी शताब्दीका है, उल्लेख मिलता हैँ कि कुन्दकुन्दाचार्य हवामे
( आकाशमे ) अधर चल सकते थे ।
दवेताम्बरोके साथ गिरनार पर्वबतपर जो विवाद हुआ था, उसका
उल्लेख आचार्य शुभचन्द्र ( ई० स० १५१६-५६ ) ने अपने पाण्डवपुराण-
में किया है। एक गुर्वावलीमें भी इस बातका उल्लेख है ।'
इतना तो निरिचत है कि दोनोमे-से कोई भी दन्तकथा हमे ऐसी
जानकारी नहीं कराती जिसे ऐतिहासिक कहा जा सके । उनमें थोडी-
बहुत जो बातें है, उनमे भी दोनो दन््तकथाओमे मतभेद है। बाकों
आकाशम उडनेको भौर सीमन्धर स्वामीको मुलाकातकी बात कोई खास
मतलबकी नहीं । अतएव अब हमे दूसरे आधारभूत स्थलोसे जानकारी
पानेके लिए खोज करनी चाहिए ।
भद्रबाहूके शिष्य ?
कुन्दकुन्दाचायने स्वय, अपने ग्रन्थोमे अपना कोई परिचय नही दिया ।
बरस अणुवेबखा' ग्रन्थके अन्तमे उन्होंने अपना नाम दिया है, और
बोधप्राभृत' ग्रन्थके अन्तमें वे अपने आपको वादश अग-ग्रनयोके ज्ञाता
तथा चौदह पूर्वाका विपुल प्रसार करनेवाले गमकगुरु श्रुतज्ञानी भगवान्
भद्रबाहुका दिष्य प्रकट करते हं । “बोधप्राभुत' की इस गाथापर खुत-
सागरने ( १५वी शतान्दीके अन्तमे ) सस्कृत टीका च्खी ह । अतएव
इस गाथाको प्रक्षिप्त गिननेका इस समय हमारे पास कोई साधन नही है ।
दिगम्बरोकी पट्टावलीमे दो भद्रबाहुओका वर्णन मिलता है। दूसरे मद्रबाहु
१ देखो-जैनितेषी पु० १० ¶० २७२ ।
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