पश्चिमी दर्शन ( एतिहासिक निरूपण ) | Paschimi Darshan

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Paschimi Darshan by डॉ दीवान चंद - Dr. Diwan Chand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सुकरात से पहलें दे है। दूसर दा नाम एनैवि्सिमडर ६११-५४७ ई० ऐू० नौर एनविसमिनिज ५८८-५्र४ ई० पू०् के हू । प्रोफेसर मकसमूलर ने कहा है कि जब कोई मनुष्य जो वर्षों से दृष्ट जगत का देखता रहा हैं अचानक इस पर दप्टि डालकर पुवार उठता है-- तुम क्या हो तो समझो कि दादानिव जिनासा उसके सन में पैरा हो गयी है । थेह्स भी दप्ट जगत्‌ को प्रतिदिन देखता था । नचापक उसके मन में प्रश्न उठा--यह जगत कया है--कसे बना है ? उसने प्राइत जगत में ही इसका समाधान दूढना चाहा । बहू समुद्र तट पर रहता था । प्रदेश के वासी खेती बाडी का काम करते थे । एसे लोगा के लए जल का जो महरव है वह स्पप्ट ही है । समृूद्र में वे जनेक जतुआ कौ पैदा होते देखते थे भूमि पर खाद्य पतार्थों को जल से पदा होते देखते थे । सम्भवत थेत्स यह भी देखता था कि जरा अनेक पदाथ जल से उपजते है वहाँ अनेव पदाथ जल में पडकर समाप्त भी हो जाते हू । उसने जछ को सार प्राजृत जगत का आदि और अत कहा । जो कुछ विद्यमान है वह जल का विकास है और जत में फ़िर जल म ही विरीन हो जायगा । जल पर जीवन का आधार है परन्तु जीवित पदार्थों में अय नश भी होने हैं और जीवित पदार्थों के साथ निप्प्राण पदाथ भी विद्यमान ह । छोहा सोना नादि घातु जठ से रतने भिन्न हैं कि इन्हें जल़ के रुपास्तर समझना सम्भव नहीं । थल्स इसे कठिनाई को दूर नहीं कर सका । एनरविंसमडर ने अनुभव क्या कि दप्ट जगत के पतार्थी में इतना भेद है कि उसे अस्वीकार नहीं क्या जा सकता जल या कोई अय नक्ला पदाथ भूमण्डर मे अपेक भेदा तथा इसकी विविधता का समाधान नही वर सकता । जल स्वय भी अपने समाघान वी माँग करता है । एनविसमडर ने थेह्स के समाधान को अमाथ बहा परन्तु उमवे मौलिक दप्टिकोण का उसने अपनाया ओर प्राइत जगत्‌ के स्रोत को प्रकृति में ही देखा । नपनी मूह अवस्था में जो निश्चितता अब हम देखते ह बह विकास वा फल है । मूल प्रति में विसी प्रवार का भेद नदी और इसकी वई सीमा नहीं । यह अनत है । एफक्सिमडर ने अनन्त वे ध्रत्यय कौ दशन में प्रविप्ट क्या । उसके पीछे अनन्त और सात वा भेद और उनका आपस बा सम्बंध एवं स्थामी समस्या बन गया है । मूल वरण एव है वयय में यह अनेग असम्य रुप ग्रहण करता है। दाशनिव प्र्न ने एक और अनेक या दूसरा रूप घारण कर लिया 1 हे




User Reviews

  • Samudra Vijay

    at 2020-12-30 16:39:43
    Rated : 10 out of 10 stars.
    One of the best text I have come across on Western Philosophy in Hindi. Style of the author is so fluent and easy to read and comprehend. Thank you, Dr Diwan Chand!
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