तत्त्व - चिन्तामणि भाग 3 | Tatv Chintamani Bhag 3
श्रेणी : धार्मिक / Religious
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
464
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
He was great saint.He was co-founder Of GEETAPRESS Gorakhpur. Once He got Darshan of a Himalayan saint, who directed him to re stablish vadik sahitya. From that day he worked towards stablish Geeta press.
He was real vaishnava ,Great devoty of Sri Radha Krishna.
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)मनुष्य जीयनका अमूल्य समय ७
तुय भ्रतात हयोती है परु परिणामे प्रियते भा कवर ই।
अज्ञानयशत यह बहुत से अस्छे-अच्छे पुरधेग चित्तो ॐँग-
डोछ कर देती है । +
साधक पुश्प मी गोरे कारण इस प्रकार मान छेते हैं कि
मेरी पूना जीर पनिष्ट करेगे परि दते हैं, इससे मेरी धु
भी हानि नहीं। परतु ऐसा समयनेयाछोंकी बुद्धि उह्ें. वोग्या देती
है और बे मोह-चारल्में फैसफर साधनपथसे गिर जाते हैं | बहुत-
से पुरप तो मात-बड़ाई प्रतिष्ठारी इच्छाके टिये ही ईश्वरमक्ति,
सदाचार् जीर ढौ+-सेयादि उत्तम कर्ममें प्रवृत्त होते हैं |
दूसरे जो जिनासु अथात् अपनी आत्माफे वन््याणके उदेत्य
से ईश्वरमक्ति, सदाचार और लोक-सेगादि उत्तम कर्म करते हैं थे
भी मान-बड़ाइ, प्रतिष्टा पाकर प्िमिट जति हि ओर उनके
ছক্কা परियतन हो जाता है । ध्येयरे बदर जान॑से मान-बड़ाई-
प्रतिष्ठाक़े छिये ही उनके सतर काम होने ठगते हैं. आर झूठ, कपढ-
दम्म और घमण्डयों उनक हृदयमें स्थान म्रिरू जाता है, इसमे
उनफा भी अप पतन हो जाता है ।
कुछ जो अच्छे साधक होते हैं, उनका ध्येय तो नहीं
यलठ्ता परतु खाभाप्रिफ ही मनको प्रिय. छगनेते कारण मान-
बड़ाई और अतिष्ठाफे जाठमें फँससर वे मी उत्तम मार्मसे रफ जति
ह । आजग्ठ जो सधु, महाम, मक्त जर ज्ञानी मनि जाते हैं
उनमेंसे तो कई परे हा ऐसे होंगे, जो इनके जाठमें न
पिये ५
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