प्रेमचन्द और भारतीय किसान | Premchand Aur Bharatiya Kisaan
श्रेणी : इतिहास / History
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
6 MB
कुल पष्ठ :
274
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)15
समाहित वर लिया । इस परम्परा के साहित्यकारा ने यह दिखा दिया कि दैनिक
जीवन वी मी रस जिंदगी म॑ भी साहित्यिक सरसता मौजूद है कि साहित्य ममाज
सुधार का एक माध्यम है, कि अनुभवपरक ज्ञान सत्य है कि यह दुनिया और मानव
जीवन ऐसा नही है जिसकी उपेभा की जाए, कि साहित्य का विपय क्षेत्र सीमित
नहीं होता, दि साहित्यवार एक जिम्मेदार व्यक्ति होता है ।
प्रेमचल्द इसी दूसरी परम्परा के साहित्यवार हैं। बीसवी शताब्दी के साथ
शुरू हुए नए राष्ट्रीय आन्दोलप और साहित्यिक उत्थान के वीचप्रेमचन्द का रचना
धर मानम पला भौर विकसित हरा 1 उन्होने अपने पूर्वेवर्ती साहित्यकारों द्वारा
उपस्थित बी गई समस्याओं को नया परिप्रक्य दिया ओर नवीन समस्याथाको
नवीन व्याख्यायें वी ।
पचपन के। परिवेश प्रोर घझनुमव
धनपनराय षा जम 30 जुलाई, 1880 को लमही (गाँव) मे हुआ, जो
बनारस (शहर) से चार मील है। ज मस्थान वे वारण प्रमचद जितना गाँव से
जुड़े हुए थ, उतना ही शहूर मे भी। इसलिए उहाने दोनों वी अध्मिता और
सम्बन्ध भावना को देखा था । यहाँ यह 71हना आवश्यर है वि शहर के नाम से जिस
आपुनित ओद्योगिक शहर की तस्वीर उभरती है उन््नीसवी और वीसवी सदी के
आरम्भ का वनारम वैसा शहर भी नही था। इस गाँव की मिट्टी म॒प्रेमचन्द पले,
बड़े हुए और उन्नति के शिखर पर चढ़े । बीच घोय मे नोक़री क सिलसिले भ अम्य
स्थाना में भी रह। पर मुद्य्त बनारस वे हो आसपास उनकी जिंदगी वा बड़ा
दिस्गा बीता । गोवा म॑ जमीदार पटवारी मुशी महाजन पुरोहित, दुवानदार,
छोटे बढ़े किपान--विभि न धर्मों और जातिया के मानेन बाने--रहत ही थे।
प्रेमबन्द थी संरेदनशीलता इन्ही वर्गों व. आपसी सम्ब'घा स निर्मित समाज-व्य इस्था
गे बनी ॥!
उनक पिता मुणो मजायवलास इवान म क्वकं ध। प्रेभचम्द कायस्थ
ध--प्राह्मण नहीं थ। उावी जीवनदृष्टि बी बुनावट मे इस तथ्य वा भी योग है ।
धर्मे तिमो ब्राह्मण बे जिए मात्र पूजा और उपासना वी वस्तु नहीं होता, वल्वि वह
उम जिंदा रहने वी एक शर्ते होतो है। धम स उनती जीवित्रा चलतो है । इसलिए
धामिर घृणा क बीज इही से जल्दी परयपता है। इसीलिए ब्राह्मणा ने धामिक
सुधारवादी आदोवनों के रमय अधिकतर सतावन घ॒र्मे रा हो पल लिपा ॥ दूसरी
मोर, वायम्थ रजकादस जुड़ा हानब बारण सारत गैर मजहुबी होता है।
ফাহ্থা रत जीवनलपापार वोट फ्वटरी, रेहयू या आय सरवारों नोवरिया मे ही
बोला है। मुगसों दे जमाद से ही इस सोगा 4 अयता भवायें राजौय बार्यों
আর দা । হন মী झायस्य बडा हो हाइवाँ हडताता है और जीवन व्यवहार मं
बहा ही यपायदर्शों होता है। बहू हि री आध्वास्मिर या भावात्मः मृल्या व नासख
१ एड भी रेप का नुप्गात सही करता | स्यविमत और जातीय सस्हारा व इस
সাব ন নাতিহিঘষ यपाधुबाद वो पप्त मे मदद की। प्रेमच द ते सदू-पारसी के
User Reviews
No Reviews | Add Yours...