हिंदी कविता का वैयक्तिक परिप्रेक्ष्य | Hindi Kavita Ka Vaiyaktik Paripraekshya

55/10 Ratings. 1 Review(s) अपना Review जोड़ें |
Book Image : हिंदी कविता का वैयक्तिक परिप्रेक्ष्य  - Hindi Kavita Ka Vaiyaktik Paripraekshya

लेखक के बारे में अधिक जानकारी :

No Information available about डॉ. राम कमल राय - Dr. Ram Kamal Rai

Add Infomation About. Dr. Ram Kamal Rai

पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

(Click to expand)
छायावाद-पूर्व काव्य में वैयक्तिक्ता के स्वर ३ कवियौ की वैयक्तिकता का एक विशिष्ट रुप हमारे सामने आता है । ये तीनो कवि अपने आराध्य के सामते कितने निरावरण रूप मे खडे होते है, किन-विन श्रकारों से उन्हें रिझ्ाते हैं, उनसे जुझते हैं. एवं शक्ति अजित करते हैं, इसका विशद अध्ययन अपने आप में एक रोचक उपलब्धि होगी । ऋवीरदास वा व्यक्तित्व अनेक दृष्टियो से असाधारण था। लोक-प्रचलन के अनुसार अवैध ब्राह्मण सन्‍्तान के रूप में जममे और गरीब जुलाहे-दम्पत्ति क यहाँ पले कवर ने जिस विराट्‌ साधना का पय अपने लिए चुना था, उसका सम्यक्‌ विष्लेषण तिथे विना उन्ह अहवादी, उद्दष्ड थोर उच्छुद्धल आदि विशेषणों से विभुषित करता उनके साय वडा अन्याय है। कबीर ने अपन व्यक्तित्व मे उत्तर भारत के योग और दक्षिण भारत वी भक्ति की धारा को तो समन्वित किया दी था चैसा कि माचायं हनारीप्राद द्विवेदी नै केत किया है किन्तु उससे भी वढकर उनकी शक्ति का मूलसोत वैयक्तिक साधना कौ वह्‌ अप्रतिहत यात्रा थी जिसकी श्रेष्ठठम ऊँचाइयो पर उन्होंवे अपने को पहुँचाया था 1 तभी वे इतने आत्म-विश्वास के साथ यह बहने का साहस जुटा सके थे कि जिस कायारूपी चादर को सुर, नर और मुनि ओढकर गन्दा करते रहे उसे उन्होंने बडे जतन से ओढकर जस की तस धर दिया । इत उक्ति मे रेखाकित करने की वात वह भगिमा नहीं है, जो सुर, नर और मुनि को स्खलित होते हृए दिखनाती है, वरनु वह्‌ सतत साधना है जिसे कबीर ने “जतन' की सन्ञा दी है । कवौर की वाणी मे उनको वैयक्तिकता की जो बैलौस अभिव्यक्ति दिखलाई पडती है, बह एक ओर तो इस विराद्‌ साधना के कारण अजित बात्म- विश्वास को प्रतिष्वेनिते करती है, दूसरी ओर उनके व्यक्तित्व-निर्माण मे जो क्रान्तिकारी, सामाजिक, धामिक तत्त्व रहे हैं, उनको भी सकेतित करती है । मुल्ला मे यह्‌ कहना कि तुम्हारा खुदा बहरा नही है, जो इतनी जोर-जोर से अजान देते हो और पडित से यह বই सकना दि अगर पत्थर पूजते से ही भगवान मिलते हों तो वे पहाड़ पूजने को तैयार है, एक ऐसा स्वर है जो आत्मविश्वास के बडे ऊँचे शिखर पर ही फूट सकता है। भक्ति-युग में कबीर की वैयक्तिक्ता की जो विराट अभिव्यक्ति हमे देखने को मिलती है उसे ठीक सन्दर्भ मे ग्रहण कर पाना कई बडेन्वडे आचार्यो के लिए भी सम्भव नहीं हो स्का । कबीर का तेवर कुछ ऐसा ही था जो बडो-बडो को चुनौती देता हुआ नजर आता या, परन्तु जहाँ कवीर अधकचरे साधन-प्नप्ट योगियो एवं अवधूतो को फ्टकारते थे, वही वे राम के समझ कितने निरीह वन जाते थे । अपने




User Reviews

No Reviews | Add Yours...

Only Logged in Users Can Post Reviews, Login Now