ह्रदय - मंथन | Hridya Manthan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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३ बीजावाप 22.1 है के सम्बन्ध से महात्मा गाधी के महान्‌ उपबास के फलस्वरूप ग्रखिल भारतीय हरिजन सेवक संघ की स्थापना हो चुकी थी। उसको शाखाएँ देश-भर मे खुल रही थी। उदार और समभदार जनता ने अछुतो का नया ओर अथंगर्भित नामकरणं---हरिजन--उत्साहु के साथ स्वीकार करे लिया था। जेल से छटने के बाद महात्मा गाथी ने हरिजनों की सेवा के उद्देश्य से सारे देश का जो दोरा किया उससे हरिजनों को मिलाने और उनकी सेवा करने के उत्साह की एक श्रभूतपूर्वं लहर फेल गई । जहॉ-जहाँ महात्मा गाधी पहुँचे वहाँ का तो पुछना ही कया, परन्त जहाँ वे नही पहुंचे वहा स्वथं जनता ने उत्सव सनाये और हरिजनो की सेवा के लिए धन इकट्ठा किया । उज्जन में भी इसी प्रकार का एक जलसा हुआ । सध्यभारत के प्रमुख गाधीवादी नेता श्रोकृष्णभाई ने एक सभा से भाषण देते हुए जनता से श्रनु- रोध किया कि आप लोग हरिजनों के दु'ख दूर करने और उनके साथ भाईचारे का मानवोचित व्यवहार करने का श्रनुष्ठान करें । हरिजनो को भी स्वच्छ रहने तथा गन्दी शआ्रादते छोड़ने का उपदेश किया गया । नगर से एक नये जीवन की उभग-सी दीखं पडने लगी । रामलाल दिन-रात परिश्रम करके अपनी जाति के लोगो तथा इसरे हृरिजनो को जीवने का यह्‌ नणा सदे सुनाने लगा। उसके ्रात्मगौरवं का भ्रब ठिकाना नं रहा । जिस शुभ भ्रवसर की बह वर्षो से प्रतीक्षा करता श्रा रहा था वह श्राखिर श्रा पहुँचा था । जिस दिशा से उसमे वर्षों पुर्व क्दम रखने का महत्वाकांक्षापणं प्रयत्न क्रिया था उससें श्राज उसे एक महुत प्रकाश दिख- लाई दे रहा था । उस दिन से उसका-घर ओर भी स्वच्छ रहने लगा। बस्त्रो और रहन- ष




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