कथा क्रम स्वाधीनता के बाद | Katha-Kram Swadhinta Ke Baad
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
87 MB
कुल पष्ठ :
617
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)00
वकील साहब के सब्न का प्याला लबरेज हो गया । उन्होंने नाक की जुम्बिश से अपना
चश्मा तनिक ऊपर उठाते हुए कहा, ये राजनीतिक कंदी हैं, ताज्जुब है !'
जमादार ने उनकी ओर घूरकर देखा, फिर बोला, नया रंगरूट है। यहाँ गुरुप्रसाद
जेलर का डण्डा चलता है | सब मालूम हो जाएगा।'
वकील साहब की कनपटी' गरम हो गयी । इसके बाद जमादार ने एक, दो, तीन, चार,
पाँच गिनती गिनती शुरू की और बैठे हुए सब कैदियों को खड़े करके पिछले बन्द फाटक
की छोटी खिड़की में से भीतर धकेल दिया । वकील साहव ने देखा कि पच्चीस-तीस देहातियों
के उस समूह में केवल एक ही चौड़ी छाती वाला व्यक्ति था, जिसने इस प्रकार बेंठते और
धकेले जाते देखकर जमादार की ओर आँखें तरेरी थीं। इन आंखों को देखकर जमादार ने कहा
था, चेहरे पर बहुत बड़ी-बड़ी मूंछें रखता है, पहलवान ?'
उसी समय पीछे से आवाज आयी, 'लाखनसिह !'
सब लोगों की निगाहें घूम गयी। जेलर के कमरे के दरवाजे पर बिरजिस पहने, बूट डरे,
कूल्हों पर हाथ रखे एक साँवले रंग का व्यक्ति खड़ा था ! पेट थोड़ा आगे निकला हुआ था और
मुँह पर कतरी हुई मक्खीनुमा मूंछें थीं। लाखनसिह ने उसकी पुकार के उत्तर में कहा, 'हजूर' ?
वही जेलर था उसने कहा, इन लोगों को बठाओ |?
छुट्टो जी ने कहा, बैठने की क्या जरूरत है ? हम लोग खड़े-खड़े ही ठीक हैं।''*
नहीं । जमादार ने जोर से धमकाते हुए कहा, गिनती होती है। बैठो, जोड़ा-जोड़ा,
जोड़ा-जोड़ा, जल्दी करो | जेलर साहब का हुक्म है ।'
क्या आप लोग हिसाब में कमजोर हैं ?' जफरअली ने कहा, हम लोग बारह आदमी हैं।
इसी तरह गिन लीजिए ।
लाखनसिंह ने अपनी मूँछें हिलाई और जेलर की तरफ देखा कि इशारा हो और वह
अपनी कार्यवाही दिखाये । जेलर ने लहजे को नरम, किन्तु आवाज को गला दबाकर मोटी
बनाते हुए कहा, देखिए, याद रखिए कि यह बरेली जिला जेल है। यहाँ आदमी अकल से काम
लेता है, तो पागल बना दिया जाता है । अगर आप लोग जेल के कायदे-कानून की इज्जत नहीं
करेंगे, तो मुझ से बुरा कोई न होगा । बसे मैं श्रापका गुलाम हूँ ।'
लन्दनतोड़ बिगड़े, तो, गुलाम साहबं, हम लोगों को सुभीते से भीतर जाने दीजिए । नहीं
तो लन्दन से पहले बरेली की जिला जेल टूटेगी ।'
जेलर ने एक क्षण के लिए लन्दनतोड की ओर देखा । फिर लाखनर्सिह् की तरफ देखकर
हुक्म किया, द, इस आदमी को उण्डवेड़ी देकर अजदही तन्हाईमें पहवाओ। बाकी लोग
जोड़ा-जोड़ा बैठ जायें । और मानो श्रन्तिम बार व्यवस्था देकर जेलर कमरे के भीतर चला गया ।
प्रबल विरोधियों की तरह बाहर रह गये बारह सभ्य राजनीतिक बन्दी भौर काल की तरह
घूरता हुआ लाखनसिह जमादार ।
इससे पहले की स्थिति बिगड़ती, वकील साहब ने प्रस्ताव रखा, देखो जमादार साहब,
हम लोग सभ्य आदमी हैं। अगर आप लोगों ने बेजा ज्यादती की, तो मरते मर जायेंगे, मगर
बेइज्जती नहीं सहेंगे । अकल से काम लो, बीच का रास्ता निकालो । हम लोग दो-दो करके
लाइन बनाकर खड़े हुए जाते हैं, तुम गिन लो। मगर बैठने की बात हम नहीं मानेंगे। कुछ
करने से पहले जेलर साहब से पूछ आओ, वरना ऐसा न हो कि लेने के देने पड़ जायें।'
जमादार कुच किकका । लन्दनतोड़ चिल्लाये, वाह वकील साहब ! यहतो कु भी न
ग्राटे के सिपाही
User Reviews
No Reviews | Add Yours...