हिन्दू-धार्मिक कथाओं के भौतिक अर्थ | Hindu-Dharmik Kathaon Ke Bhautik Arth
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
130
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)६ हिन्दू-धःमिक कथाश्रों के भौतिक अर्थ
अहर' तथा मानवो के शत्रु बन गये; पर विरीत्रध्न' के रूप में विध्न अथवा
आच्छादन पर विजय पानेवाले भ्रहुर' की पूजा होती रही।'
ऋग्वेद मे देवराज इन्द्र का प्रधान रातु वृत्र है। वृत्र शब्द का अर्थ है--
धेर कर रखनेवाला' । वृत्र जल को धेर कर रखता टै । इन्द्र उसका वध
करके उस जल को पृथ्वी पर लाते हैँ । ऋम्वेद ये बल, अ्वूःद तथा पणि--येभी
वृत्र के समान गो (जल, प्रकारा, पृथ्वी भ्रथवा कृषि) को रोक कर भ्रथवा धेर
कर रखनेवाले शत्रु हैं । जिनसे इन्द्र तथा अन्य देवता (जो असुर भी हें)
युद्ध करते हैं। वृत्र दानु' का पुत्र दानव है; पर स्वयं वृत्र का भी नाम दानु है।
वृत्र के मारनेवाले इन्द्र तथा विष्णु के सहायके मरुद्गण भी दानव हं भ्र्थात्
दानु रूपी श्रन्धकार के पुत्र हं । इन्द्र तथा वृत्र के आकाशिक उद्भव के इतने
लक्षणों के होने पर भी अंगरेजी पुस्तक प्रिहिस्टारिक इण्डिया' के लेखक स्टुगर्ट
पिगट ने वृत्र अथवा बल के वध तथा जल की धारा बहाने का ক্স आरारय॑-सेनाओ्रों
द्वारा सभ्य अनायों के बाँधों को तोड़ कर जल द्वारा उनकी बस्तियों को तहस-
नहस करना समज्ञा है । परन्तु, मित्तानी राजाओं द्वारा इन्द्र की पूजा तथा
विरीत्रधष्न, वाहागन, बहराम अथवा राम के रूप में ईरान एवं आरमीनिया में
इन्द्र की पूजा, इस सिद्धान्त की पुष्टि नहीं करते । °
ऋग्वेद में देवताश्रों तथा दास अ्रथवा दस्युझ्नों के युद्धों का वर्णन अवश्य है,
जिनके पुरों को देवताशों ने जीत लिया। सम्भवतः यहु दस्यु उस काल के
नायं नेता थे । पर इनके साथ ही रक्ष, यातु तथा यातुधान नाम के शत्रुओं
का भी वर्णन है। इन्हें मनुष्यों का शत्रु कहा गया है तथा इनसे रक्षा के लिए
देवताओं की प्रार्थना की गई है। इनके वणेन हिसक पशु, लुटेरे, व्यभिचारी,
स्त्री-पुरुष, रोग, प्रभृति जसे हँ तथा लगभग सभी (असुर) देवों से इन आपदाओं
के निराकरण के लिए प्रार्थना की गई है। सूत्रों में भी राक्षस देवों से ही नहीं,
असुरों से भी अलग माने गये हँ । यथा--याभिर्देवा श्रसुरानकल्पयन् यातुन्मनून्
गन्धर्वान् राक्षसइच 1১২
देव तथा असुर स्पष्ट ही महान् प्राकृतिक शक्तियों के नाम थे। भारत में
देव दिव्य तथा हितकारी शक्तियो का नाम रहा एवं श्रसुर' नाम अंधकार, आच्छा-
दन भ्रथवा श्रहिति करनेवाली शक्तियों के लिए व्यवहार में श्राने लगा। ये
शवितियाँ सजीव एवं ऐश्वर्यशालिनी थीं। ग्रतः इनके लिए श्रसुर' नाम का प्रयोग
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(2) 7১170001055 ০£ ৪1] 1২০.০০৪-1:270190-0010-0 271.
(३) कौशियृश्वसूत्र १३१०६
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