हिंदी-कविता का विकास पहला भाग | Hindi-Kavita Ka Vikas Pehla Bhaag

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Hindi-Kavita Ka Vikas Pehla Bhaag by आनन्दकुमार - Anandkumar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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हिन्दी-साहित्य की रूपरेखा [ & सन्देह नह कि कड बातों में सूरदास तुलसीदास से भी बढ़- चढ़कर हैं | मनुष्य-हृदय को गुदगुदाने की जो शक्ति सूरदास की रचना में है वह तुलसो की रचना में नहीं है । इनका सबसे प्रधान अंथ सूरसागर है । कहते हैं, इन्होंने सवा लाख पदों कीः रचना की थी । पर अब केवल <-६ हज़ार पद ही मिलते हैं। कुछ लोग इन्हें तजमाषा का प्रथम कवि मानते हैं। सूरदास ने एक-एक विषय पर सेकड़ों पद लिखकर अपनी अद्भुत कवित्त्व- शक्ति का परिचय दिया है। हिन्दी में 'डज्भजार रस और वात्सल्य- रस इनके जेसा सरस ओर कोई नहीं लिख सका है । कृष्णोपासक कवियों में मीरा, नन्‍दृंदास और रसखान का नाम भी बड़े आदर के साथ लिया जाता है। मीरा कृष्ण को प्रियतम के रूप में भजती थीं । इन्होंने बड़ी मधुर कविता की है । नन्‍्ददास ने भी रासपंचाध्यायी और भवर. गीत आदि काव्यों की रचना की है और उनके द्वारा अपने. सम्प्रदाय के सिद्धांतों का प्रचार किया है। रसखान ने सवेयों में बड़ी हृदयस्पर्शी कविता की है। इनके सवेये अब भी बड़े चाव से पढ़े और गाये जाते हैं। इनकी भाषा विशुद्ध बजभाषा' मानी जाती है । मक्तिकाल मे कुछ अन्य सुकवियों ने भी रचनायें की हैं , लेकिन उनकी रचनाय साम्प्रदायिक रचनाओं की कोटि में नहीं: आसकतीं । रहीम, नरहरि, गंग और बीरबल इसी काल में हुये थे । नरोत्तीमदास ने अपना सुप्रसिद्धं मथ 'खुदामा-चरित” इन्हीं: दिनों बनाया। | इसी. काल में महाकवि केशवदास ने रामचन्द्िका, कविपरियः ओर रसिक्र-प्रिया नामक श्रेष्ठ अर्न्थो की रचनाः की। हिन्दी. के.




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