बीजक | Beejak
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
43 MB
कुल पष्ठ :
339
श्रेणी :
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लेखकों के बारे में अधिक जानकारी :
महावीर प्रसाद द्विवेदी - Mahavir Prasad Dwivedi
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हंसदास शास्त्री - Hansdas Shastri
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)द बीजक
कल अभिमाना खोड कै, जियत वा नहिं होय ।
देखत जो नहिं देखिए, अदिष्टि ভান सोय ॥८]
यधि शष्ट क्ट नौ सूता, जम बोधे अंजनी के पूता।
जम के वाहन बधे जनी, षधे सिषटि कँ लोमनी ।.
बौधे देव तेंतीसो कोरी, सँवरत लोह बंध गोतो
राजा सवै तरिया वदी, पंथी संवरे नाम जते बदी॥
अथं विहूना सवैर नारी, पजा संदे पूहुमी भारी।
वंदि मनवि ते फल पावे, वंदि दिया सो देय।
कहें कभीर ते ऊबरे, जो निस बासर नामहिं लेय ॥६॥
गही क्ते पिपराही बही, करगी आवत काहु न कही |
आई करणी भो अजगूता, जन्म जन्म जम पहिरे बूता ॥
बता पहिरि जम करे समाना, तीनि लोक महं करे पयाना ।
बोधे ब्रह्मा भिस्वु महेश, सुर नर शनि चौ बधु गने ।।
बधि पौन पवक ओ नीरू, वाद सुरुन बाँधे दोठ बीरू ।
साँच मंत्र बाँधिन्हि सम झारी, अमृत बस्तु न जाने नारी ||
' अमृत बस्तु जाने नहीं, मगन भये सब लोय। ....
कहहिं कभीर कामो नहीं, जीबहिं मरन न होय ॥१०॥
आँधरि गुष्टि सिष्टि भो बोरी, तीनि लोक मह लागि ठगोरी ।
ब्रह्मा ठगो नाग कहें जोरी, देवतन सहित ठगो त्रिपुरारी ॥
राज ठगौरी भिस्तुर्दिं परी, चोदह झुवन केर चोधरी।
आदि अंत जाके जलकन जानी, ताऋर डर तुम काहेक मानी ||
वे उतंग तुम जाति पतंगा, जम घर कियहु जीव को संगा ।
नीम कीट जस नीम पियारा, विष को अमृत कहे गँवारा ॥
पा० ऽ-जनक न जानी । काहू न जानी । २-जाई, संहारी।
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