राजा रानी | Raja Rani

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पं. रूपनारायण पाण्डेय - Pt. Roopnarayan Pandey

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रवीन्द्रनाथ टैगोर - Ravindranath Tagore

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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पहला श्रद्ट इन झेठों की हसी, रूप-रमझीयता भ्रीर कान्ति कमनीय पान करना वर्ह-- हृदय पमार खडा । दिवस-अ्रानंक के तट से आश्रे। निकट, उतर झाओ। प्रिय! यह अथाह है हृदय, जिस तरह रात का सागर हे । तुम चरग-कमनत रस्कर यहाँ भ्रनना, बेठा ।--कहाँ रही श्रव तक प्रिय? सुमि०--रखिए यह विश्वास सदा हूँ श्रापकी | घर मे रहत कामकाज, उनम नगी रहती हूँ में। घर भी ता है झ्ापका, ओर काम भी नाथ । विक ०- प्रिय, सब छोड दा । घर या घर का काम नहीं कुछ काम का। तुम बाहर की नहीं, दय कौ वम्तुहा भीतर हैं घर, और तुम्हारा घर नहीं । चाहर कं मब काम पड़ बाहर रहं-- भख मार | सुमि०- क्या मन में ही हूँ आपके ? नदी नाथ, यह वही, भ्ठ यह बात हे | बाहर से भी ई मदैव सैं आपकी | भीतर द प्रेयसी, भेर बाहर बद्दी रानी। विक्र०--दा, प्रियतमे, आज स्यां खप्र मा




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