गद्य-संकल्प | Gadh-Sankalp

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Gadh-Sankalp by करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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५ ७ ) कितना मर्मस्पशी, प्रभावशाली और संवेदनशील है--यही दृष्टि प्रमुख रहती है। अपनी दृष्टि, आस्था या विश्वास से दूसरे को प्रभावित कर अपना समर्थक बनाने की अपेक्षा इस वर्ग के निबंधकार का प्रयास अपनी टीक-ठीक स्थिति को प्रकट करने, अपना भीतर और बाहर खोलकर अपने पाठक के सामने निःसंकोच रीति से, आत्मीयता पूर्ण ढंग से प्रकट कर देने की ओर उन्मुख रहता है| ऊपर वर्णित घटना, भाव अनुभूति, प्रसज्ञ, दृश्य आदि के कारण उसके अन्‍न्तजंगत्‌ में, भावसध्ति में क्‍या क्रिया- प्रतिक्रिया होती है, इसे वह प्रकट कर देता है। उसकी श्रभिव्यक्ति जितनी हो संवेदनशील तथा अनुभूति-प्रवण होगी--उसका भावात्मक व्यक्तित्व उतना ही अधिक प्रभावशाली होगा । अतः विषयिप्रधान प्रगीत कविता के समान निबंध में भी संवेदनशील भावाभिव्यक्ति की सप्राणता अपेक्षित होती है। विषय अत्यन्त साघारण या कभी-कभी सामान्यतः उपेक्षणीय भी हो सकते है, पर लेखक के व्यक्तित्व की भावप्रवश अभिव्यक्ति उसे घार्मिक और मनोरम बना देती है । विषयि-प्रधान निबंध का लेखक अपनी भाव-लदरियों के साथ उन्मुख होकर उद्रेलन करता चल्लता है। फलतः उसका रचना-शिल्प किसी निर्धारित रचना-सरशि का अनुगमन करने में बाध्य नहों होता । उसकी भावना उसे कव ओर किधर बहा ले जायगी, कल्पना कहाँ उड़ा ले जायगी, भावमयी चिन्तनधारा किंस ओर बह पडेमी, रागात्मक श्रासन्ञन किधर प्रेरित कर देगा---इसका कुछ निश्चय नहीं रहता । विषय के किस सम्बन्धसूत्र को लेकर वह किधर चला जायगा--कुछ निर्धारित नहीं रहता । और यह सब कुछ निबंधकार अपने पाठक को इस प्रकार सुनाता है, जेसे लेखक के लिए. पाठक ऐसा आत्मीय, ऐसा निकट है, जिससे न तो कुछ गोपनीय है और न सब कुछ सुना देने में संकोच है। श्रोता न तो ऊबेगा, न थकेगा और न चिढ़ेगा | वह पूर्ण मनोयोग, पूरी सहानुभूति হন पूर्ण उत्सुकता के साथ सब कुछ सुनेगा, सुने बिना नहीं मानेगा ।




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