व्याकरण ज्योत्स्ना (द्वितीय किरण) | Vyakaran Jyotsna (Dwitiya Kiran)

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Vyakaran Jyotsna (Dwitiya Kiran) by करुणापति त्रिपाठी - Karunapati Tripathi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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[ १२ | इन स्वरों में कुछ ऐसे सत्र होते हैं, जिनके उच्चारण में कम समय लगता है। इस प्रकार के स्वरों को एक मात्रा वाले स्वर या हृस्व स्वर कहते हैं | दूसरे प्रकार के स्वर वे हैं, जिनमें पूर्वोक्त स्व॒रों के उच्चारण काछ की अपेक्षा अधिक समय लगता है इन्हें दो मात्रा के स्व॒र या दीघ स्वर कहते हैं । अ, इ, उ, ऋ--ये चारों हिन्दी के हस्व सवर हैं। आ, ई, ऊ--ये तीनों क्रमशः अ, इ, ऊ-के दीघे रूप ( दीघ स्वर ) हैं। हिन्दी में ऋ का दी रूप नही होता है। ए, ऐ, ओ औ--इन चारों स्वरों कै उच्चारणमं दोमात्राका समय लगता है, अर्यात्‌ अधिक समय लगता है--अतःये दीघं स्वरहै। हिन्दी में इनके स्व रूप नहीं होते हैं । अतः हिन्दी में अ, इ, उ, क्रू--ये चार हस्व हैं तथा--- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, ओ--ये प्रात दीघं स्वर है। स्वरों का एक प्लुप्त रूप भी होता है। इन प्लुप्त स्वरों के बोलने में दो मात्रा वाले दीघं स्वरोसे भौ अधिक समय ( तीन मात्रा का समय ) छगता है । किसी को पुकारने के लिए सम्बोधन भादि मं प्ुप्त स्वर का उपयोग होता है । हिन्दी में प्लुत को लिखने के लिए कोई स्वतन्त्र लिपि चिन्ह नहीं दहै। स्वर के आगे ऊपर की ओर ३ लिख कर प्लुप्त का उच्चारण प्रकट किया जाता है, जेसे--हे महेश ३, ओ रंजन ३, आदि । हमारी वर्णमाला में दूसरे प्रकार के वर्ण वे हैं, जिनका उच्चारण बिना किसी दूसरे वर्ण की सहायता के नहीं होता है, जैसे---र, घ, क आदि । व्याकरण में इन्हें व्यंजन कहते हैं। हिन्दी में मुख्यतः पेंतोीस व्यंज्नन कहें जाते हैं, जो नीचे दिये जा रहे हैं--- क, ख, ग, घ, डः ( कवर्ग ) च, छं, ज, भ, ज ( चवर्ग ) ट, ठ, ड, ढ, ण ( टवर्ग ) त, थ, द, घ, न ( तवगं)




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