शील की नव वाड़ | Sheel Ki Nav Baad

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Sheel Ki Nav Baad by श्रीचन्द रामपुरिया - Shrichand Rampuriya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सूसिका १-घ्रह्मचय का परिमापा शीत की मय बाड़ में प्रयुक्त का भर्ष बहन है भौर बाड़ का है की रसा के उपाय इहाचारी के रहुन-सइत की मर्वादाएं भौर शिप्टाचार 1 पी मज़सदेव पाझो के भनुसार सु्टि के समस्त पदार्थों का थो प्रशय शूटस्प घाशथत दिस्प मूलकारण है बह है ममषा जानइप बेद साहा है | ऐसे की प्राप्ति के उ्देप्य से अत-एहज करना इड्ाचर्य है ! थी बितोबा गहते हैं. “अदाचर्प का मठलब है. इह्टा की लोजनें झपता रखना सबसे बिसाल प्येय परमेशर का साशात्कार करता । उसमे लीचे की बात गही बढी है ।” महदारमा गांपी लिखते हैं : 'द्चर्प के मूल भव को सब याइ रखे | भर्पात्‌ इह की--सरय की घोष में चर्या पर्चात घम्बत्दी धाचार । इस मूल धर्ष में से सर्वशियसंपमटपी बिसेप भर्य निकलता है। बेजल तनेसियसंपम रूपी भपूरे पथ को हो हुमे भूल टी जाना चाहिए” । उन्होंने भम्पत्र बहा है. 'अह्मजर्य या है । बह जीवत की ऐसी चर्याँ है थो हुं तक पहुंचाती है। इसमें बलगम किया पर सम्पूर्ण संपम का समाबण हो जाता है । यह संयम मत बचत भौर कर्म से होना चाहिए ।” उपयुक्त हीगों ही बिचारकों ने शल्द के भ्रप मैं पुम्दरता साने की च्टा की है भौर उसे बड़ा स्यापफ बिभाम श्प दिया है। पर बसा प्रष नेदों में उपलब्स श्रदुंमचारी परपदा शझचर्य एस्द गए मद्दी मिसता । सापण ने इझचारी एप्द का भ्रम गरते हुए सिपा है-- इणि बेदात्मके भप्येतप्पे चित यस्य सं” --जेदाह्मक इ को भप्सयत करता जिसका भाजरण--सीस है उसे कहते हैं। इद्चर्म की परिमापा इस कप में सिलती है-- 'बिद को शर्म बहने हैं। बेदाप्यपत के सिए भाचरणीस गर्म अप्चर् है* ।” यहाँ गर्म का भर्ष है सलिधादान मि्ाजर्या भौर भादि । कम एल्द में उपस्प-सपम इतिय-संयम का समावेश मते ही मियां था सके पर बेद प्रयुक्त बरप्चचर्य की शो प्राचीन परिभाषा है बहू ऐसा धर्ष भी देठी यह स्पप्ट है। मइपि पठड़ति मे का प्रथ 'बस्ति तिरौप” क्रिया है। अब हम शत में बर्णित 'इद्दाचय' एम्द थी स्पाक्या पर धान । सूजहताड में बडा है : को प्रहण कर मुमुन्तु पदार्थ घास ही हैं भ्रणाइइठ ही हैं लोक नहीं है, प्रगोड़ तहीं है, भौग महीं है मडीब लीं है प्रादि-प्रादि इप्टियाँ त रख 1” पहां “अहाचया एस्द की ब्यास्पा करते हुए भी छीसाए शिसते है-- “जिसमें सरय ठप भूत-इपा १--सारतीय सत्हठि का बिषास ) स्ंपामपि भूतार्गो पत्त्कारपपमण्पपम्‌ 1 शात्य्त दिप्प॑ बड़ी था शानयेष पत्‌ सवुत्ततुमपैं हम मझगभ्दन कप्पत । शदुद्िस्प बरतें पस्प स डच्पत ॥ -बग 1 हमचच पृ १ ३३ इ--मंगछ प्रमात प्र ११ १७ इ-5ला ४. 9 165 ते शमूद्ित ११ ४ १ सापज ---अपपोेद ११ ४ 1७ स्रावज ९ 1१-३९




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