आत्मबोध मार्तएड | Atmbodh Martand

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Atmbodh Martand by लक्ष्मीचन्द वर्णी - Laxmichand Varni

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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( १४ 3) ऐसी उत्तम सिद्ध आत्मा, समझ रमश मे मिटे कलंक | झनुभव करलेवे जगवासी, कट फाँंस अरू बने मर्त ॥ दोहा ग्लत्रय मय जगत टे, शक्ति व्यक्ति का भद। जवं तक्र जी समै नहा, पावत टे कह खेद )॥३॥ रतत्रय पाय घिना, ना स्ह फनी सिद्ध । याते रलत्रय लट), कणे क्रमे से युद्ध ॥४॥ निज श्रद्धा सस्यकत्त है, निज जाने संज्ञान | निज मंपति में थिर रहें, सच्चागित्रि ववान ॥५४॥ आपा परसों भिन्न लग्वि, परको दे छिटकाय । सम्यग्दशन ज्ञान व्रत, का यह ठीक उपाय ।६॥ ॥ सम्यरदशंन का स्वरूप ॥ पद्धरी छन्द अनंतानुबंधि मिथ्यात्व जान, इससे होवे सम्यक्त्व ज्ञान ! इनकी उपशम या नाश होय, अर मिश्र सहित ये तीन होय ॥ इस विधिम सम्यकूउदय जान्‌, याको निज श्रद्धान मान | ।॥ मम्यम््ञान क्ल स्वरुप ॥ यह जीव तत्व का निज स्वरूप, पहिचान सम्यग्न्रानि भूष (८; नन््-~-----------~------=> ৮০০ সপন এ ০০ তা जा “सा [ ५ | छयोपशम |




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