बिहार की कौमी आग में | Bihar Kaumi Aag Me

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Bihar Kaumi Aag Me by मोरार जी देसाई - Morar Ji Desai

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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गये और वापूजीकी डायरीमें अपनी रिपोर्ट लिख गये । आराम लछेनेकी सूचना की । भोजनमें दो खाखरे, छः ऑऔंस दूध और गुड़पपड़ीका क छोटा-सा टुकड़ा लिया। फलमें दो सन्‍्तरे। वापूजी भोजन कर रहे थे, जितनेमें प्रभावतीवहन आ पहुंची । जिसलिओ अन्हें पंखा देकर मैं नहाने-धोने चली गओ। थोड़ी देरमें जयप्रकाशजी भी आ गये । साढ़े बारह बजे तक बातें होती रहीं। आध घण्टे आराम लेकर ओक बजे वापूजी अठे । कातते हुओे निर्मेलदासे पत्रोत्तर लिखवाये । दो वजेसे मुलाकातें शुरू हुमआं। लीगवाले जाफर जिमाम, मजहर जिमाम, यूनिस साहव ओर छपराके हिन्दुओंके साथ चार बजे तक मुलाकातें चलीं। छीगवालोंकी बातें मुझे तो कुछ अतिशयो- क्तिपूर्ण लगीं। परन्तु - बापूजीने यहां भी गांवोंकी यात्रा स्वयं करके देखनेके बाद ही कोओ राय देनेको कहा है। ' ' वापूजीने आजकी प्रार्थनाको व्यवस्था दूसरे ढंगसे करनेकी सूचना की । “दोनों तरफ स्त्रियोंकी कतार आगेके भागमें रखी जाय । जिससे पुरुषोंकी भीड़ स्त्रियों पर कभी नहीं पड़ेगी। जिस व्यवस्थाके सिवा अनुग्रहवाब भी पहलेसे चले गये थे। अन्होंने लोगोसे शांति व्रनाये रखनेका अनुरोध किया । जिससे प्राथनामे जाते-आते अच्छी दाति रही । प्रार्थनाके वाद रामधुन भी वरावर ताल देकर জীবীল गाओी। ` प्राथना-सभाके भाषणमं वापूजीने शामकी व्यवस्था, शांति ओर प्रा्थनामं रामधुनके समय सवके अच्छी तरह भाग ठेनेके लिञे जनताको वधाभी दी। फिर कल होली होनेके कारण असे मनानेका सही तरीका वताते हभ बापूजी बौर, “ओक जमाना असा था जव हिन्दू और मुसलमान भेक-दूसरेके त्योहारोमे, रीति-रिवाजौमे, शादी-गमीके मौर्को पर॒ परस्पर सहायता करते और सहानुभूति दिखाते थे | आज भले वह वात व रही हो, फिर भी अँसे अवसरों पर ओ्ेक-दूसरेके साथ दुश्मनों जैसा वरताव तो नहीं करना चाहिये। “ नोआखालछी और त्रिपुरामें में जैसी बातें हिन्दुओंसे सुतता था, वेसी ह्री वते यहा मुसलमानोसे सूनता हुं । जिसलिओ मुझे बड़ी शर्म आती है। फिर भौ अन्दर यह्‌ सलाह देता हूं कि आप मन्यसे डरना छोड दे আহ ओक्वर पर श्रद्धा रखकर अपना पुरुपार्थ आगे बढ़ायें। , “क्या विहार जैसे प्रान्तमें मुसलमान नहीं रह सकते? डॉ० सैयद महमूद जैसे कांग्रेसके अनेक सुस्लिम सेवक यहां मौजूद हैं। क्या हम आुनका ^,




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