मेरे साहित्य का श्रेय और प्रेय | Mere Sahitya Ka Shrey Or Prey

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Mere Sahitya Ka Shrey Or Prey by प्रभाकर माचवे - Prabhakar Machwe

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेरे साहित्य का श्रेय श्ौर श्रेय १ : विलक्षण वात हुई । इससे श्रात्मिक से श्रलग कुछ शारीरिक, या कि . कहना चाहिए, ऐन्द्रियिक स्वास्थ्य मिला। इसी पहले दौर में एक कहानी जो ले ;कर 'बेठा कि श्रटक गया । देखा कि मन में काफी विकल्प उपज रहे हें श्र ताना वाना फैलता जा रहा हैं। इस से तो में डर गया । छापे में छह-सात-आठ पृष्ठों में चीज आरा जाए तो ठीक हैं, पर यह वला तो उतने में समाने वाली नहीं दीखती । ... इस उलकन में पड़कर तीन चार सफ लिखे हुए टूर हटा फेंके । पर कुछ श्रौर करने को न था भर लिखने से मिली ताऊज़गी तीन-चार दिन में चुक कर खतम हो गई थी । फिर वही मुर्भाहट । सोचू कि लिखू' तो वही पुरानी उघेड़वुन के तार दिमाग में जाग जाएं । आंखिर टालता कब तक ? | इस तरह उस कहानी को लिखे चला गया, तो वन गई परख । परख में क्या श्रेय है और क्या प्रेय है--इस के उत्तर में मुझे. निद्चय हैं कि साहित्य का अध्यापक झर विद्यार्थी अत्यन्त प्रामाणिक रूप में वहुत कुछ कह सकेगा । पर में इतना जानता हूं कि उसके. सत्यघन की व्यर्थता मेरी हूं श्रोर विहारी की सफलता मेरी भावनाओं की है । भ्रौर,. कट्टो वह है जिस नें मुझे व्यय किया श्रौर जिसे में अपनी समस्त भाव- चारों का वरदान देना चाहता था । यानी यथार्थेता की घरती से उठ कर, उन सव चित्रों में जिन्हों ने मिलकर परख की कथा को रूप दिया, मेरी भावनाएं श्रौर घारणाएं हो अनायास भाव से बुनती गई हूं । इस ऊपर की वात से मेरा यह मतलब ह कि व्यक्ति को सीधे श्रपनें जीवन में मिलने वाला जो लाभ है चह साहित्य का पहला श्रेय है । शायद उसको व्यक्तित्व लाभ हो कहना चाहिए । यानी लिखनें के द्वारा मेंने क्या श्रेय देवा चाहा है, यह दूसरे नम्वर की श्रौर गोण वात है । उस लेखन द्वारा, नाना चरित्रों की श्रवतारणाओं में से, मेंने अपनी सिजता में किन परिणतियों का उपभोग किया है, वही प्रयम श्रौर प्रमुख वात है । लेखक देने के लिए कुछ दे सकता हैँ, यह मेरी सम में नहीं




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