संतमत का सरभंग-सम्प्रदाय | Santmat Ka Sarbhang-Sampraday
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
346
श्रेणी :
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No Information available about डॉ० धर्मेन्द्र ब्रम्हचारी शास्त्री - Dr. Dharmendra Brahmchari Shastri
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)पृष्ठभूमि और प्रेरणा ३
एकदेबत्व के उच्चतर धरातल पर पहुँच चुकी थी। भूतस्य जात. पतिरेक ° यो देवेष्वधि
देव एक आदि मव्राश एक सर्वोपरि देव, श्रर्थात् एक परमात्मा को गित करते है ।
परवर्तों सतमत का 'एकेश्वखाद' वीज रूप में वेदों के इन मत्राशों में विद्यमान है|
सतों का एफेश्वरवाद' अद्वेतवाट को आधार मानकर चलता है । चाहे शाकर
श्रद्वेंत हो, चाहे शैव সরু হী, चाहे सगुणवादी वेष्ण॒वों का अठ्ठोत हो, चाहे निगु ण॒वादी
सतो का अद्वे त हो, सब के मूल में मुख्यतः उपनिपदे हैं। निदर्शन-निर्मित्त कुछ उद्धरण
पर्याप्त होंगे---
ब्रह्म वा इठमग्र आसीत्तदात्मानमेबावेदह ब्रह्मास्मीति |
तस्मात्तसवंमभवत् |
अथवा---
सदेव सोम्येदमग्र आमीदेकमेवाहदितीयम् |?
अथवा[--
आत्मा वा इदमेक एज्ाग्न आसीत् |४
अथवा--
अयमात्मा ब्रह्म सर्वातुभू. 1“
अथवा--
तय एपो८णिमेतदात्म्यमिद / सर्वेतत्सत्य स
रामा तत्वमसि श्वेतकेतो 1९
अथवा--
सव॒ खलत्तरद ब्रह्य तज्जलानिति शान्त उपासीत ।*
अथवा---
नेह नानास्ति किञ्चन ।<
उपययु्त उद्ररणो से, जो च्रह्य त्रथवा आत्मा' नामक अद्ठ त तच्च का प्रतिणादन करते ६,
स्पष्ट है कि जिन पश्चादवर्त्ती धार्मिक शाखाओं अथवा सम्प्रदायो ने अद्दोत्तवाद के सिद्धान्त
को दाशनिक ग्राधार-शिला वनाया उन्होंने मूल प्रेरणाएँ उपनिषदों से लाँ। ক্স ही
नहीं, सतमत की प्राय. सभी मान्यताएँ उपनिषदू-युग मे मूत्तं रूप धारण कर चुकी थीं।
सतों ने ब्रह्म को निगुण माना है और इसीलिए हम অন কর্মী निगु ण॒ भक्ति की चर्चा
करते हैं, उसके छारा सतमत की ओर सकेत करते हैं। यद्यपि सगुण राम अथवा कृष्ण
के उपासक सूर, तुलसी आदि भी सत थे, किन्तु धीरे-धीरे 'सत' शब्द निगु णवादी साधकों
तथा महात्माओं के अर्थ म ही रूढह होता चला आया है} লজ निगुण है, ऐसा कहने
का यह तात्यय होता दै कि वह सत्व, रजस् शरोर तमस् इन तीन गुणो से विशिष्ट जो प्रकृति है,
उससे विकसित ग्रहकार, मन, बुद्धि, इन्द्रिय आदि विकृतियों से परे हैं। सतो ने
বদ্যন भक्ति से प्रभावित होकर निर्गुण-मावना के क्षेत्र मे 'राम' का व्यापक रूप से अगी-
कग्ण {किया है, किन्धु उन्होने “रामः को सगुण न मानकर निगुण माना | उन्होंने अवतारबाद
में भी अनास्था प्रकट की है, क्योंकि अवतार ग्रहण करते का रथ दै निगुण का सुर
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