देखा, सोचा और समझा | Dekha, Socha Or Samjha

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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सेवायधाम के दशेन 1] ७ इतनी दूर जाने का प्रयोजन केवल दर्शन दी नहीं कुछ बात- चीत करना भी था परन्तु उस परिस्थिति में सहसा कुछ कहते न वन पढ़ा । श्री० पी० चाई० देशपायडे ने दो वात शुरू की, “मद्दात्मा जी झापकी तथियत तो ठीक है ?”” “'तवियत खराब नहीं है”--मदात्मा जी ने उत्तर दिया--''यह इसलिए किया गया है कि तवियत खराव न हो ज्ञाय ! पेट पर गीली मिट्टी इसलिये रखी गयो है कि खून का दूवाव न बढ़े और सन्ध्या के समय सर की ज्ञा सके । पेर में पट्टी इसलिये चंघी है कि यहाँ की मिट्टी खराब होने के कारण पेर में विवाइयाँ फट जाती हैं । अभी विदाई से खुन तो नहीं निकला पर पट्टी न चाँघने से निकल अआयगा । यह सब स्वास्थ्य विरड़ने न देने की सावधानी है । यह विश्वास हो जाने पर कि मद्दात्मो जी की तबियत ठोक हैं, उनकी आक्षा ले प्रश्न किया-- स्वराज्य की माँग राजनैतिक आन्दोलन है । राजनेतिक उद्देश्य से स्वाराज्य या युद्ध चिरोध पूरे देश की, पूरी जनता की समस्या है। इस झान्दोलन को व्यक्तिगत प्रश्न या व्यक्तिगत का रूप दे देना कैसे उचित हो सकता है ? ऐसा सत्याग्रह करने के लिये भगवान में विश्वास की शर्त लगाना; ठीक नहीं। भगवान में चिश्वास सार्वजनिक या राजनैतिक प्रशन नहीं साम्प्रदायिक श्रीर व्यक्तिगत अशन है । ऐसी शर्त लगा देने से झनेक राष्ट्रीय कार्यकर्ता, जो राजनैतिक उद्देश्य से जन दिंत के लिए कुर्बानी करने के लिये कैयार हैं; देश की वर्तमान परिस्थितियों में निःशख्र या झर्इिसात्मक आन्दोलन की नीति को स्वीकार करते हैं परन्तु भगवान के अस्तित्व को युक्ति से प्रमाणित होते न देख उसे मानने के लिये या भूठ-सूठ विश्वास प्रकट करने के लिए तैयार नहीं, देश की स्वतन्त्रता के लिए सत्याश्रह ओर में भाग लेने से वंचित हो जाते हैं । सार्गजनिक समस्या को व्यक्तिगत झान्दोलन वना देना झौर' राजनैतिक झान्दोलन में भगवान पर विश्वास की धार्मिक या साम्प्रदायिक शर्ते लगाना कहाँ तक ठीक दे * गांधी जी ने उत्तर दिया--इंश्वर पर विश्वास को श्ावश्यक समसने के दो कारण हैं । प्रथम तो यहद कि सत्यात्रही के लिये शक्ति श्र प्रेरणा का स्रोत भगवान के सिंवा दूसरा नहीं। निः्शस्त्र




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