सत्यमेव जयते | Satyamev Jayate
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
5 MB
कुल पष्ठ :
162
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)“सत्यमेव जयतेः १५
को एक बडे महत्व का पत्र लिखा था, जिसमे सत्य व अहिसा
के बुनियादी सिद्धान्तो का बहुत सुन्दर विवेचन है। सत्य की
व्याख्या करते हुए उन्होने लिखा-- हृमारे श्रत्तःकरण को जब
जो ठीक लगे वही सत्य है ।” दूसरे दाब्दं मे भ्रगर हमारा दिल
साफ हो और हम अपने हृदय की गवाही के अ्रनुसार ही विभिन्न
परिस्थितियों में कार्य करें तो हमें सत्य का आशीर्वाद प्राप्त हो
सकता है। किन्तु अगर हमने अपने-आ्रापको धोखा देने की कोशिश
की और प्रपने अन्तर की आवाज को सुना-श्रनसुना कर दिया तो
हम सत्य का हनन करते हुए अपनी आत्मा की भी निर्मम हत्या
कर बैठेगे ।
मेरे पिताजी अकसर कहा करते थे कि दुनिया मे सबसे
आसान काम है अपने-आपको धोखा देना हम दिन-रात
कोशिश करते है कि कही दूसरों के धोखे मे न फेस जाय॑ं । लेकिन
यह नही समभते कि हम खुद ही अपनेको दिन में शायद कई
बार धोखा देते रहते है ! भ्रकसर हमारा दिल तो कहता है कि
अमुक काम बुरा है और उसे नही करना चाहिए, लेकिन फिर भी
हम झपने मन को कई व्यावहारिक दलीले देकर समभा लेते है
कि वेसा करने में कोई खास हज नही है । दुनियादारी, लोभ,
मोह व लालसा हमारी बुद्धि पर पर्दा डाल देते है भौर हमारे
हृदय को छलकर असत्य व्यवहार करा डालते है। बस, यही है
सारे पाप की जड और भ्ूठ की बुनियाद ।
जब मैं १९४२ के “भारत छोडो” आन्दोलन के श्रन्तर्गंत
बुलढाना जेल में राजबन्दी था तव चहारदीवारी के नजदीक
चारो शरोर घूमते हुए काफी दोहे लिख डाले थे, जो बाद में 'श्रमर
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