बनारसी बाई | Banarsi Baai
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
195
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)बनारसीदाई নও
तरह जात नहीं गंवाऊँगा। नौकरी करने आया हूँ जात नही জী
संकता--
पर मुखर्जी बावू को बुरा नहीं लगता उनकी बात का । हँस कर
हाथ में थैला झुलाते प्रेमलानी साहव के घर की ओर चल देते ।
“कुछ मंगाना है क्या साहब ।
“>तुम जा रहे हो मिस्टर मुखर्जी, थोडा आटा पिसाना था, पिसा
लाओगे ?
--कयो नही लाङगा । सवे का सामन सा रहा हूँ! जेन्किन्स साहब
घोष बाबू, सभी का कुछ न कुछ लाना है--डाक्टर बाबू के बीस सेर
भालू लाऊँगा, आपके गेहूँ नहीं पिसवाकर ला सकता ।
शुरू-शुरू में अनूपपुर में कुछ भी नहीं था । डाक्टर बाबू ही वहाँ के
पहले व्यक्ति थे। तब यह सब घर मकान कुछ भी नहीं बने थे । शुरू में
तम्वू में रहना पड़ता था । स्टेशन के किनारे-किमारे तम्बुओं की लाइनें
समी थौ । तव न तो प्रेमलानी साहव अये थे और न नट्टु घोष । डेढ़ सौ
क्लर्क में से एक भी नहों आया था । बस जेन्किन्स साहब और डाक्टर
নাছ आये थे, खड़यपुर से दो बक्से दवाइयों के आये थे, उन्हीं पर भरोसा
था। हुकुमसिह पहले ही आ गया था। नदी के उस पार दुम्म जिले मकान
में अपने रहने की व्यवस्था कर ली थी उसने । ऊपरी मंजिल लकड़ी
कोथी और छत दीन की । कुली मजदूर आये थे जो जंगल साफ कर
रहे थे। मकान बना रहे थे, सड़के बना रहे थे, अस्पत्ताल बना रहे थे।
और फिर एक के बाद एक आफिस शुरू हो गये थे । हुकुमसिंह के तीन
मजदूरों को साँप ने काट लिया था। विषधर सर्प ।
हुकुमसिह बताता था, कैंसा भयानक जंगल था यहाँ--बाघ आता
था रात को--
दो शेर मारे भी थे हुकुमसिह मे । नदो किनारे पानी पीने आता
था रात को शेर। अपने दुमं जिले के कमरे से राइफल से दो बाघ मारे
थे दो दिन में उसमे । तब तक हम लोग नहीं आये थे । जेन्किन्स साहब
भी नहीं जाये थे ।
कन्स्ट्क्शन के काम में इन बातों से डरते से यह काम नहीं चला
करता ।
नई लाइन बिछाई जा रही थी। अनूपपुर से एक रेल लाइन उत्तर
की त्तरफ चली गई थी, अनुपपुर के बाद दर्वासीन, वियुरि फिर मनेन््-
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