प्रगति और परम्परा | Pragati Aur Parampara

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Pragati Aur Parampara by रामविलास शर्मा - Ramvilas Sharma

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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१२ प्रगति ओर परम्परा व्यक्तित्व का रहस्य उसकी अमर आत्मा नहीं हे वल्कि एक हो शरीर में उसके जीवन का प्रवाह है । यह भौतिकवाद अपनी आरंभिक अवस्था में बहुत कुछ यान्त्रिक था। वह संसार को एक बड़े यंत्र के रूप में देखता था। प्रकृति का बारवार उल्लेख करते हुए भी वह उसे एक बड़ी मशीन के रूप मे चित्रित करता था जो अनिवार्यता श्रौर संसग ( १९९ च्ञ 8त 49৪০৫126০00.) के नियमों से वेधी हुई थी । फिर भी बर्कले जैसे आदर्शवादियों को देखते हुए यह मनुष्य के चितन में एक बहुत बड़ी प्रगति थी। बकले भूतजगत्‌ के अस्तित्व से ही इन्कार करता था। उसने एक पुस्तक लिखी ज्ञान के सिद्धान्त! ( [2179लं0188 01 रि0जण०१2७ ) जिसमें उसने कहा था, लोगों में यह एक बड़ी विचित्र धारणा फेली हुईं है कि मकान, पहाड़, नदियाँ ओर इन्द्रियों से जानी-पहचानी जाने वाली तमाम बस्तुएँ अपनी . एक प्राकृतिक या वास्तविक सत्ता रखती हैं जो बुद्धि द्वारा अहण किये जाने पर निभर नहीं हैं।” इसका मतज़्व यह था कि मनुष्य का मन जिस चींज़ को नहीं पहचान पाता, संसार सें उसका अस्तित्व भी नहीं है । आदशवादी विचारक संसार की स्वतंत्र भोतिक सत्ता को अस्वीकार करते थे । उनके अनुसार ग्रह सत्ता केवल मनुष्य के सन में थी। बकले का तर्क था कि भौतिक वस्तुओं को हम अपनी इन्द्रियों से पहचानते हैं। इन्द्रिय-ज्ञान वास्तव सें अपने ही विचारों और संबेदनाओं का ज्ञान है । इसलिये भोतिक बस्तुओं का अस्वित्व मनुष्य के विचारों का पर्यायवाची है । यदि कोई पूछे कि जब मनुष्य का मन मोतिक पदार्थों को नहीं पहचानता तब उन्तका क्या होता है तो इसका उत्तर भी बर्कले ने दे दिया था। उसके अतुसार इसकी सत्ता किसी अनंत मन या अनंत चेतना में




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