नंदन - निकुंज | Nandan Nikunj
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
3 MB
कुल पष्ठ :
214
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)प्रेभ-परिणाम १५
को भांति इधर-उधर फिरने लगे । बहुत कठिनता से मां
মিছা | वि शेक्षेद्र के हव॒य मै इसका कण-भर भी
प्रभाव नहीं । एक ही कदपना--एक ही चिता । तब क्या
शेलेंत्र वास्तव से आनंद का अनुभव करते हैं। क्या उन्माद
में भी मोद है ? क्या उन्मत्तता में भी अपूवे भानंद हि!
(३)
छदि ठ द्हितितल्ते वस्किनीन
सर्वोगसुंद् रतया प्रथमैररेखाम् ।
रुसारनाव्करसौत्तमरत्नपात्री
না स्मरामि कुसुमायुधबाणुखिक्ञाम् ५
“+चौरकवि
शल्तद्र ने इतने दिनों से क्या किया, सो भगवान् जाने ।
कितु उनके सौभाग्य से उन्हे एक उदार, सुशील पुनं सच्चरित्र
मित्र का अपूर्वे ज्ञाभ हुआ । पदस्य प्रदेश मे श्रभी
छुल-कऋपद द्रव्यादि ने प्रवेश नहीं कर पाया हैं। अत्र भी
घौ सरलता का श्रखंडराज्यदै । नरभ्रौर नारी, सब्र के
मुखौ पर एक श्रपूवै सरवता भलंकती है । संध्या-समय
जब पावेतीय नरीगण मनीदर कलकंठ से राग अलापती
हुईं गििनिभस्णी-तय पर जक्ष सोने को आती हैं, सब
बहाँ पर एक अपूर्त दश्य इंथ्टिगोचर होता है ।
उनका मधुरं हस, उनफा मधुर विलास, उनके श्रातरिक
शमुराग का श्ोतक धनका मधुर राग और उनका सरल
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