नंदन - निकुंज | Nandan Nikunj

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Nandan Nikunj by श्री दुलारेलाल भार्गव - Shree Dularelal Bhargav

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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प्रेभ-परिणाम १५ को भांति इधर-उधर फिरने लगे । बहुत कठिनता से मां মিছা | वि शेक्षेद्र के हव॒य मै इसका कण-भर भी प्रभाव नहीं । एक ही कदपना--एक ही चिता । तब क्या शेलेंत्र वास्तव से आनंद का अनुभव करते हैं। क्या उन्माद में भी मोद है ? क्या उन्मत्तता में भी अपूवे भानंद हि! (३) छदि ठ द्हितितल्ते वस्किनीन सर्वोगसुंद् रतया प्रथमैररेखाम्‌ । रुसारनाव्करसौत्तमरत्नपात्री না स्मरामि कुसुमायुधबाणुखिक्ञाम्‌ ५ “+चौरकवि शल्तद्र ने इतने दिनों से क्या किया, सो भगवान्‌ जाने । कितु उनके सौभाग्य से उन्हे एक उदार, सुशील पुनं सच्चरित्र मित्र का अपूर्वे ज्ञाभ हुआ । पदस्य प्रदेश मे श्रभी छुल-कऋपद द्रव्यादि ने प्रवेश नहीं कर पाया हैं। अत्र भी घौ सरलता का श्रखंडराज्यदै । नरभ्रौर नारी, सब्र के मुखौ पर एक श्रपूवै सरवता भलंकती है । संध्या-समय जब पावेतीय नरीगण मनीदर कलकंठ से राग अलापती हुईं गििनिभस्णी-तय पर जक्ष सोने को आती हैं, सब बहाँ पर एक अपूर्त दश्य इंथ्टिगोचर होता है । उनका मधुरं हस, उनफा मधुर विलास, उनके श्रातरिक शमुराग का श्ोतक धनका मधुर राग और उनका सरल




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