ग्रहणी रोग मैं विविध कल्प | Grahani Rog Main Vividh Kalp
श्रेणी : स्वास्थ्य / Health
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
46.54 MB
कुल पष्ठ :
572
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)स्ज्ध्छ ते
३
(२) चिकित्सारमभ के पूर्व शुद्ध एस्टड तेल १
श्रौस, गोठुग्ध सुखोष्ण १ पाव रात्रि काल में
देकर विर्चन कराना चाहिए। विरेचन के लिये
ब्न्य अश्वकंचुकी, परगोलेक्स, फेस्टोफिन शादि
ब्मौचचियां भी ली जा सकती हैं.। विरेचनोपरान्त
पेया पिलाकर मदनादि वमन चूणं झथवा मात्र
नमक ही उष्ण जल से घोल पीकर गले में 'ंगु-
लियां डाल वमन करा देना चाहिए । चमनोपरात
पतली खिचड़ी से पयौप्त घूत मिश्रण कर खिला
कर तब दूसरे दिन से निम्न प्रकार चिकित्सा आरम्भ
करनी चाहिए--
२-(अ) सिंहनाद गुग्युल्त २ गोली; उन्मादगज
७
केशरी २ गोली, चतुभुज रस २ गोली; मुझुटेश्वरी
वठी २ गोली । ४ मात्रा-प्रति ४-४ घंटे पर बच
चूर्ण ह। माशा एवं गो छत ३ माशा से दें ।
(व) सारस्वतारिष्ट २. तोला; अश्वगन्धारिंष्
२ तोला। २ सात्रा । भोजनोपरान्त समान भाग
जल से दें ।
(स) सिर से त्राह्मी तेल, किंवा महा, लदमी-
विलास तैल तथा सम्पूर्ण शरीर से चन्दनवला-
लाचादि तेल का सर्दन प्रतिदिन करे ।
(द) त्रिफला चूर्ण १॥ माशा; शुलकन्द आधा
तोला। ? मात्रा । रात्रि काल शयन करते समय
सुखोप्ण गोदुग्ध अथवा केवल जल से दे ।
२-(अ) जैलोक्य चिन्ठासणि रस २ रत्ती ।
२ मात्रा । प्रात: ६ बजे; सायं ६ बजे झद्रख स्वरस
एवं शहद से दें ।
(व) स्पत्तिसागर रस ९ रनती,; वातकुलान्तक २
रत्ती, अभयादि गुग्युल २ गोली । ९ मात्रा । आातः
६ वजे एवं सायं ४ बजे ब्राह्मी घृत अथवा पुराण
गोघूत से दें ।
(स) दशमूलारिडर १। तोला, अश्वगन्धारिष्ट
१॥ तोला; सारस्वतारिष्ट १ तोला । २ मात्रा )
रे-(अ) चिन्तामणि चतुमु ख ९ रत्ती, चतुभु जि
२ रत्ती, दृ० भूत मरव न रत्ती, रजत भस्म २ रत्ती
घन्वन्तरि
४ मात्रा । सारस्वत चूर्ण ग्रति मात्रा १ माशा;
हि. कम, बे. -थ
गोघृत ३ माशा से लेकर ऊपर से गोदुग्ध पौधे ।
(व) 'मश्वगन्धारिए, सारस्वतारिप, दशमूला-
रिप्ठ का उपरोक्त प्रकार मिश्रण भोजनोपरान्त
समान भाग जल से दे ।
नोट--कऋम ? के खण्ड स' तथा “ड बाली
क्रियाएं प्रत्येक योग के साथ करे ।
यदि योषापस्मार में जैसा कि बहुधा देखा
जाता दै,रुग्णा में गर्भाशय विकृति किंवा मासिक घ्म
में विकृति हो तो यथा विकृति रजः प्रवर्तिनी बठी,
नष्ट पुष्पांतक रस, कन्यालोहादि गुटिका; चन्द्रांशु
रस, चन्द्रम्रभावटी, पुष्पघन्वारस, रत्नभागोत्तर
रस, त्रिवज्ञ भस्म, लोदभस्म, कुमारी आसव,
लोददासव, लोघासव, अशोकारिष्ट आदि औषधियों
का भी यथा दोष चुनाव कर उल्लखित चिकित्सा
के साथ साथ ही दें। भोजनोीपरांत वाले आसव
मिश्रण से लोद्दासव, कुमारी झासव का भी सिभण
कर सकते हैं। ऐसी अवस्था में सबको समान
भाग से मिश्रण कर २ तोले की मात्रा में ही जल
के साथ लेना चाहिए । रज प्रवर्तिनी एवं नप्रपुष्पां-
तक सवंदा सेवनीय नहीं है । अन्लुमानिक महिला
आने के १० से १४ दिन पूर्व से झवस्थाचुसार ?-१
किंवा २ गोली गमं॑ जल तिल, गुड़ क्वाथ आदि
लेने से ७ से १४ दिन के अन्दर ही मासिक ख्राच
होने लगता दै। यदि रुग्णा में रक्ताल्पता आइि
कारणों से आतंव विकृति हो तो भी उल्लखित
योग लाभकारी है । चैद्य को रुग्णा की परिस्थिति
के अलुसार औषधि एवं उनके असुपान नुन लेने
चाहिए ।
श्यायुर्वेदीय सूच्वीवेधनों मे मैंने प्रताप श्मायु०
फार्सेसी देहरादून के “शांता” एवं सातंण्ड फार्ससी
वढ़ौत के “स्मृतिदा” सूचीवेघन का श्रयोग किया ।
स्तिदा मथम एवं. शांता ट्वितीय किंवु दोनों
सफल रहे ।
यद्यपि आधुनिक चिकित्सा विज्ञान इस रोग के
सम्बन्ध में आयुर्वेद से किंचित भी ये नहीं है ।
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