साहित्य - सोपान भाग - २ | Sahitya Sopan Bhag - 2

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Sahitya Sopan Bhag - 2  by गंगानारायण द्विवेदी - Ganganarayan Dwiwediदया शंकर दुबे - Daya Shankar Dube

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दया शंकर दुबे - Daya Shankar Dube

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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দি ৬:৬৬৬৪৬৬৬৮ य॑ ट ६ हेत ः साहित्य-सोपान (| {1 कक कक, হি ১৬ 55655455354 हितीय भाग १-प्रभ-प्राथ ना जय जय जय ज्ञगदीश ! दीन जन के रखवारे । जय जय ऋरुणा-सिन्धचु परम पिय पिना हमारे ॥ जय अनाथ के नाथ ! हाथ गहि राखन इरे, जय निधन के घन लिबल के बल अति प्यारे ॥ जय जयति सदर्शन-चक्रतर, सकतल भक्त-भमव्-सय-हरण । ज्य दान-दयाल दयानिधे, रमा-रमण, शशरण-णरण ॥ १॥ तव महिमा, रे महामद्िमि ! नहि जाय बखानी) सेल श्नाग्दाश्मादि धके, सुर पुनि ऋषि ज्ञानी ॥ * नेति नेति ` कह वेद्‌, मेद्‌ ककु जात न जान्यो । द्मगम, श्रगाचर, पध्यज़र, श्रकथ, सत दिधि सों मान्या॥




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