अगस्त क्रांति और प्रति क्रांति | August Kranti Or Prati Kranti
श्रेणी : राजनीति / Politics
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
10 MB
कुल पष्ठ :
199
श्रेणी :
यदि इस पुस्तक की जानकारी में कोई त्रुटि है या फिर आपको इस पुस्तक से सम्बंधित कोई भी सुझाव अथवा शिकायत है तो उसे यहाँ दर्ज कर सकते हैं
लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
No Information available about मन्मथनाथ गुप्त - Manmathnath Gupta
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)( ९ )
कहना चाहूँगा। यद्यपि १६०५ की रूसी क्रान्ति असफल रही, फिर भी
इसके बारह वप बाद एक वलिक दा क्रान्तियाँ हुई जिससे मनुष्य के
द्वारा मनुष्य के शोपण का अन्त कर विश्व इतिदास में एक नव्यु ग
को सूचना हुई | १६४२ के संग्राम के सम्बन्ध में क्रान्ति शब्द का प्रयोग
करने में मेर मन मे यह भी बात है कि रूस की तरह भारतवप में भी
फरवरी तथा अक्टूबर म॑ क्रान्तियां होगो, (जनके कारण कनभकनाकर
हमारी जनता की बेड़ियां टूट जायेगी। १६४२ को भारत मे आने
वाली फरवरा तथा अक्टूबर क्रान्तियां का कपड़ा सरिति रिहसल
समभता हूँ ।
इतिहास म॑ ऐसा देखा गया हैं कि प्रयोग के दोरान मे शब्दों में
नई व्यंजना की उत्पत्ति होती है| रूस की अक्टूबर क्रान्ति के बाद
इसी प्रकार यह कहा जा सकता है कि १६०५४ की तरह अ्रसफल जन-
विद्रोह के लिये क्रान्ति शब्द के प्रयोग का एक नया क्रान्तिकारी अथ
हो गया है | इस प्रकार जिस समय मै यह कहता हूँ कि १६४२ का
संग्राम एक क्रान्ति था, उस समय व्यंजनात्मक रूप से मेरा यह
अभिप्राय हैं कि इसके बाद क्रान्तियाँ तब तक होती ही रहेंगी, जब
तक सही अथ में किसान मजदूर राज्य की स्थापना नहीं हो जाती ।
१९०५ ओर १९४२ में मोलिक मेद
पर इस प्रकार की ऐतिहासिक तुलना या समानानन््तरबवाद प्रत्येक
क्षेत्र मं ठीक ही हो ऐसी बात नहीं, कई ज्ञेत्र में तो इस प्रकार का
समानान्तरवाद खतरे से पूण होता है और उनसे गलतफहमियों के
उत्पन्न होने का डर रहता है | कोई भा दो घटनाये सब दृष्टि से एक
नहीं हो सकतीं । १६०५ की रूसी क्रान्ति तथा १६४२ का भारतीय
कान्त मे कं मौलिक प्रभेद हैं । । |
१९४२ को बढ़ाने के लिये १६ ०५को घटाना जरूरो नहीं
१६४४ के ८ सितम्बर को लखनऊ म॑ बोलते हुये श्रो श्राकृष्ण दत्त
User Reviews
No Reviews | Add Yours...