समीक्षायण | Samikshaayan
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
11 MB
कुल पष्ठ :
156
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)समीज्ञायण ই
हाल ही में प्रकाशित 'नकुत्र नामक प्रतीक्रात्मक खणड काव्य में नकुल को
सावेभोमता के प्रतीक के रूप में ग्रहण किया गया ই:
कवि के ही शब्दों में--
सावेभं:म जो, इष्ट उसे क्यों न हो नकुलता,
सीमा भ अवरुद्ध रहेगा अमल-अतुल क्या?
राष्ट्रीय कवियों में श्री माखनलाल जी चतुर्वेदी का नाम अन्यतम है |
'एक भारतीय आत्मा” के नाम को वे स्वथा सार्थक करते हैं। राष्ट्रीयता के
स्वस्थ वातावरण में ही वे साँस लेते रहे हैं । पुष्प की अभिलाषा' आपकी
केवल सर्वेप्रिय रचना ही नहीं है, उस्ती में आपकी कविता का मूलमंत्र भी छिपा
हुआ है | बलिदान की भावना ही इनकी सर्वेप्रिय भावना है । इनके 'मरण
त्योहार! की कल्पना तो बड़ी रोमचिक है। राजस्थानी साहित्य में अवश्य ही
मरणा-महोत्सव के भव्य चित्र देखे जाते हैं । देश ओर धमं की रक्ञा कै लिए
पुत्र का धारा-तोथे में स्नान करना ओर सती का चितारोहण राजस्थान में परम
तेभ्य सममा जाता था । भारतीय श्रात्मा' के लिए बलिशाला हयी मधुशाला
है । उद्गत्त आदर्शो की रक्षा के लिए ज्ञो कवि बलिदान की भावना को लेकर
मृत्यु का जय -जयकार कर रहा हो, जो केवल स्वप्र-लोक में ही नहीं, किन्तु
वाघ्तविक जगत में भी राष्ट्रीय पथ का सच्चा पथिक रह चुका हो, ओर जेलों
में ही जिसके रवि उगे और अस्त हुए हों, उस कबि के कान्य की श्रोजस्विता
ओर मार्मिकता का तो भला कहना द्वी क्या ? दिनकर ने इस कवि को शरीर
से योद्धा, हृदय से प्रेमी, आत्मा से विहल भक्त ओर विचारों से क्रांतिकारी
कहा है। कवि की बहुत सी पंक्तियाँ रह-रह कर याद आती हैं--
तुम बढ़ते ही चले रुदुलतर जीवन की घड़ियाँ भूले
काठ खोदने चले, सहसदल की नव पंखड़ियाँ भूले ।
कवि ने अपने लिए सच ही कहा है--
सूली का पथ ही सीखा हूँ,
सुविधा सदा बचाता आया।
में बलि-पथ का अंगारा हूँ,
जीवन-उवाल जगाता आया।
राष्ट्रीय कवियों में दिनकर को भी नहीं भुलाया जा सकता ज्ञो अपने
आपको युग-धर्म की हुंकार बतलाते हुए सिन्धु का गजेन तक सुनना नहीं
चाहता । केसी ओजस्वी ललकार है इन पंक्तियों में--
सुनूँ क्या सिन्धु ! में गजन तुम्हारा
स्वथ युग-घम की हकार हूँ. में ।
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