जय - हिन्द काव्य | Jai Hindhkavya

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Jai Hindhkavya by श्रीचन्द - Srichand

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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४ के प्रतीक गांधी को उत्पन्न किया ! नवभारत प्राचीन भारत का ही रूपान्तर है ! अखंडभारत चिरंजीवी है | इस पुस्तक की एक और विशेषता यह है कि इसमें आधुनिक युग के उसी काव्य को सम्मिलित किया गया है जोन केवर भाव-पूति दवै किन्तु जिसकी भाषा भौ सरल हैं | वह ही भाषा सरल कहलाती है जो लोगों की समझ में आ सके । लोगों के कान जिसके शब्दों से परिचित हों । सब जानते हैं कि जयशंकर “प्रसाद! की कामायनी की भाषा संस्कृतमयी होने से कितनी दुरूह है । किन्तु देखा जाता है कि प्रारम्भिक पुस्तकों म भी कामायनी के उद्धरण बालकों के पढ़ने के लिए छाव दिये जाते हें, जो उनकी समझ से बाहर हैं। इससे बालकों को क्या लाभ ! हम तो यह कहेंगे कि मध्यकाल के जायसी की पद्मावत के अवधी पाठ को भी आगे के लिए उठा रखा जाय । किन्तु भूषण में वीररस प्रधान होने के कारण हम उसे नहीं छोड़ सकते । उसकी भाषा का बोध कराना आवश्यक है, हमने उसके पदों की व्या- ख्या इस पुस्तक में छाप दी है। इससे विद्याथियों की कठिनाई दूर हो नायेगी । इतर संग्रहो मे शगार रस की कविता को भी प्रारम्भिक पाठो मे सम्मिकिति किया गयाहं। यद्‌ सर्वथा निन्दनीय है। हमने इस पुस्तक मे हिन्दी के प्राचीन-ख्प की भाषा के उन्हीं पदों का समावेश किया है जो नव-भारत के नव-जीवन के नव-नवोन्मेष में सहायक प्रतीत होते हैं। काव्य का प्रयोजन भी तो यह ही है कि नव-जीवन का संचार तथा सुधार हो; इसलिए ऐसे काव्य के पढ़ाने से क्या लाभ जिसका बालकों के लिए आगामी जीवन में कोई उपयोग ही नहीं ! हमने इस पुस्तक में ऐसे पदों का ही संग्रह किया है जिनको पढ़ने से बालकों के जीवन पर ऐसा अच्छा प्रभाव पड़े कि वह सच्चरित्र बन सकें और उनका जीवन सफल हो। बालको, यदि स्वतन्त्र भारत में तुम्हारे जीवन को सक्रिय, सत्यशील, [ ११ ]




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