नैषध-चरित-चर्चा | Naishadh-charit-charcha

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Naishadh-charit-charcha by महावीरप्रसाद द्विवेदी - Mahaveerprasad Dvivedi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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श्रीहष नाम के तीन पुरुष १५. इससे हमारे साहित्य के गौरव की बदी हानि हई है । कभी- कभी तो समय ओर प्रसंग जानने ही से परमानंद होता है। परंतु, खेद है, संस्कृत-माषा के ग्रो की इस विषय मे बडी ही दुरवस्था है। समय ओर प्रस॑ग का ज्ञान न होने से अनेक ग्रंथों का गुरुत्व कम हो गया है। इस अवस्था में भी, जब संस्कृत के विशेष-विशेष प्रैथों की इतनी प्रशंसा हो रही है तब, किस समय किसने, किस कारण, कोन ग्रंथ लिखा-- इन सब बातों का यदि यथाथ ज्ञान होता, तो उनकी महिमा ओर भी बढ़ जाती । जिस प्रकार बन में पड़ी हुई एक सोंदर्य- वती मत स्त्री के हाथ, पेर, सुख आदि अवयवनमात्र देख पढ़ते हैं, परंतु यद्द पता नहीं चलता कि वह कहाँ की है, और ` खक है, वैसे दी इतिहास के बिना हमारा संस्कृत-मंथ-साहित्य ल्ावारिस-सा हो रहा है । यही साहित्य यदि इतिहासरूपी आदश में रखकर देखने को मित्रता, तो जो आनंद अमी मिलता है, उससे कई गुना अधिक मिलता.। राजतरंगिणी, विक्रमांकदेव-चरित, कुमारपात-चरित, प्रबंधकोश, प्रथ्वीराज- ` विज्ञय इत्यादि ग्रंथों का प्रसंगवशात्‌ कभी-कभी कुछ उपयोग होता है, परंतु इतिहासः मे इनकी गणना नदी । इन्देतो . काव्य ही कहना चाहिए, क्‍योंकि देश-ज्ञान, काल-क्रम और ` सामाजिक वर्णन तथा राजनीतिक विवेचन, जो इतिहास के _ मूलाधार दं उनकी शरोर इन पर्थ मे विशेष ध्यान दी नही दिया गया। ८




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