नहीं नहीं | Nahi Nahi
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
18 MB
कुल पष्ठ :
118
श्रेणी :
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लेखक के बारे में अधिक जानकारी :
पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)ले! मैं बालूजा से बात करूंगा !”” झट सिर पर पठा रखकर हरीतिमा न सेठजी के
पांव छुए | द द
चंद्रशेखर उदास-सा बोला - “मैं शायद अंधा हो जाऊँ। डाक्टर बर्वे कहते
हैं कि यह संभव है। इसीलिए हरि ने हरी को भेज दिया।”
वही तोता न जाने कहां से आकर खिड़की पर बैठा और जोर से बोला -
“नहीं! नहीं !!” चंद्रशेखर ने जाकर उसे पकड़ छिया | छगता था जैसे वह पकड़ा
जाने की प्रतीक्षा ही कर रहा था। उसने उसे अन्दर छाकर एक अमरूद दिया और
मेज पर बिठा दिया। अमरूद की तरफ़ तो उसने देखा भी नहीं, पर मेज़ पर मज़े
में बैठा रहा |
सेठजी बोले - “मालूम नहीं किस बिचारे का है।” तोता मुंह ऊपर करके
जोर से बोटा - “नहीं! नहीं !!””
हरीतिमा एक पीतल का बहुत ही सुन्दर पिजरा उसके रिए लायी । कंजूस
हरीतिमा ने 350 रुपये उस पिंजरे पर खर्च दिये। तोता खुद-ब-खुद उस पिजरे मे
घुस गया, जैसे कि हमेशा से वहाँ उसी पिंजरे में रहा हो | चंद्रशेखर ने कहा - “सेठजी,
ठीक ही कहते थे । यह तोता पार्त है 1** पिजरे के अन्दर से चि्लाकर तोता बोला-
“नहीं! नहीं!!”
इस “नहीं-नहीं” से प्रेरित होकर चंद्रशेखर ने उसका नाम रख दिया -
“नो! नो!” द
पिक्चर फ़ेल हो गयी | कमजोरी कहानी में थी और किसी की कोई भी सलाह
मानने में जैसे सेठती की हतक थी। कहानी-लेखक बहुत प्रसिद्ध था, मगर वह
कहानी तो सेठजी ने इतनी बदली थी कि स्वयं लेखक भी उसे नहीं पहिचान सकता
था। चंद्रशेखर यदि दबी ज़बान से सेठजी का विरोध करता था, तो सेठजी छगभग
व्यंग्य से कहते - “तू अपना काम कर ना यार! स्टोरी में टांग मत अड़ा।''
. सो पिक्चर के दो दिन में उड़ जाने पर उन सब छोगों को थोड़ी खुशी कहीं
हुई, जिनका अपमान सेठजी ने किया था। उसकी चार महीने की तनंख़्वाह बाक़ी
थी और जब पैसे डालनेवाले का छह छाख क॒र्जा घोषित हुआ, तो सेठजी ने अपने
कान्टरक्ट के एक लख तो इलाहाबाद वक मे डाल दिये थे ओर कम्पनी के मातहतों
को चार महीने के वेतन के बदले दो महीने का वेतन देने के बाद कम्पनी को दिवाछिया
घोषित कर दिया गया |
अंधापन शुरू होते ही चंद्रशेखर की आंखों का ऑपरेशन डा. बर्वे ने किया,
पर आंखों को बचा न सके। अस्पताल में हरीतिमा उसके लिए खाना बनाकर लाती
18 : नहीं! नहीं !
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