बलराम के हजारों नाम | Balram Ke Hajaron Naam

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Balram Ke Hajaron Naam by मणि मधुकर - Mani Madhukar

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मुझे उन हादसों में उतरना था जिनके भीतर. जिन्दगी की साबुत मुस्कराहटें उगती हैं यह जानते हुए कि जख्म एक खुले मर्तवान की तरह मैदान में रखा हुआ है मैने उन खुदगर्ज ह्फ़ों के खिलाफ़ गवाही दी जो रोजमर्रा की तकलीफ़ों को नगरपालिका की ओर घकेल रहे थे वे उस वक्‍त भी मेरे चारों श्रोर थे वे आज भी मेरे चौतरफ़ हैं उनकी गुर्रहट कपड़ों की सलवटों में खो गयी है और मेरी नफ़रत मेरी वेचेनी सूसे जख्म की भाँति सख्त गाढ़ी खुरदरी हो गयी है ! बलराम के हजारों नाम / १७




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