भारतीय साहित्य | Bhartiya Sahitya
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
12 MB
कुल पष्ठ :
163
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)जुलाई १६५८] भारतीय भाषाविज्ञान का भविष्य ११
नहीं झ्राएँगे किन्तु प्रथम शीतकालीन सकल में श्राशा से दुगुनी संख्या थी और श्रगले
ग्रीष्मकालीन स्कूल में यह संख्या १७५ से भी अधिक थी । इन शिक्षणार्थियों में बहुत से
विश्वविद्यालयों या उनके श्रंगीय ग्रथवा सम्बद्ध कालेजों के शिक्षण-विभागों के थे | ऐसी
विस्मयजनक संख्या की प्रबलता ने विश्वविद्यालयों का ध्यान झरकषित किया और १६५४
से १९५८ के बीच के काल में क्रमश: आगरा विद्यापीठ जैसी संस्था सामने आई, तथा
गुजरात, बड़ौदा, कर्नाटक, आंध्र, त्रिवेन्द्रम, और अन्नामलाई अदि विभिन्न विश्वविद्यालयों
ने स्नातक एवं स्नातकोत्तरीय स्तर पर भाषाविज्ञान के अध्यापन के लिए या तो पूरे
नियमित विभाग खोले या केवल प्रोफेसर-पद की स्थापना की । विश्वविद्यालयीय शिक्षणक्रम
में भाषाविज्ञान को सम्माननीय स्थान देने के लिए जो यह फिभकता हुआ चरण उठाया
गया है, वह इस तथ्य को स्वीकार कर रहा है कि इस प्रशिक्षण की सामयिक आवश्यकता
है भौर इसका प्रयोग हमारी अधिकांश कष्टपूर्ण समस्यायों में सम्भव है ।
कुछ मास पूर्व पूना विश्वविद्यालय ने, जिसकी कि डेक्कन कालेज एक अंगीय संस्था है,
भाषाविज्ञान की उन्नति के लिए विश्वविद्यालयों द्वारा शक्य प्रयासों पर--विशेषत: इस तथ्य
को ध्यान में रखते हुए कि डेक्कन कालेज की कायं -योजना श्रगले वर्ष समाप्त है--विचार
करने के लिए उपकुलपतियों और भाषाव॑ज्ञानिकों के एक सम्मेलन का श्रायोजन पूना मं
किया । सम्मेलन का उद्घाटन डा० देशमुख ने किया और लगभग सत्रह उपकुलपति या
उनके प्रतिनिधिगण तथा देश के विभिन्न भागों के १८ भाषाविद् इसमें उपस्थित थे । दो
दिन के विचारविमश के पश्चात् सम्मेलन एकमत से संक्षिप्ततया निम्ननिदिष्ट निष्कर्षों
पर पहुँचा :--
(१) भाषाविज्ञान को भारत में विश्वविद्यालयीय शिक्षण में कुछ भौर अश्रधिक
प्रमुख स्थान ग्रहण करना चाहिए तथा भाषाविज्ञान के सवंसाधनसम्पनन श्रौर कार्यकुशल
विभागों के निर्माण में क्रमिक विकास योजना द्वारा शीघ्र प्रभावशाली चरण उठाए
जाने चाहिए ।
(२) भाषाविज्ञान को पूवेस्नातक तथा स्नातकोत्तर कक्षाभ्रों मे रिक्षण का
विषय बनाना चाहिए ।
(३) उपग्रक्त समय के भीतर इस उदेश्य कौ प्राप्ति के लिए ग्रीष्मकालीन स्कूलों
एवं शरत्कालीन विदग्धगोष्ठ्यों का श्रायोजन, जो कि इस समय डक्कन कालेज द्वारा
होता है, कम से कम आगामी दस वर्षों तक, लिग्विस्टिक सोसाइटी ग्राफ इंडिया के
सहयोग के भ्राधार पर बारी-बारी विश्वविद्यालयों के सामूहिक सहयोग से होता रहे ।
(४) स्नातक स्तर से लेकर शोध-स्तर तक भषाविज्ञान के सभीश्रगों के शिक्षण
के लिए दो या तीन केन्द्रों की कुछ चुने हुए विश्वविद्यालयों में स्थापना होनी चाहिए ।
(५) इसके साथ ही साथ देश के दूसरे भ्रन्य विश्वविद्यालयों में भारत के प्रमख
भाषा परिवारों के तुलनात्मक एवं ऐतिहासिक श्रध्ययन के लिए चार या पाँच केन्द्रों की
स्थापना होनी चाहिए ।
(६) लिग्विस्टिक सोसाइटी श्राफ़ इंडिया”! और विश्वविद्यालयों के सामूहिक
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