सिगरेट के टुकड़े | Cigratte Ke Tukde
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
4 MB
कुल पष्ठ :
198
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४.
तेरी शिक्षा का मुभे यही लाम होना था। मुभे पता होता तो.
तुभे...“
अब भी मनोरमा को ज्जा नहीं आई, उसकी आँखें नहीं
भुकीं । वह बोली-“आप मुझे दासता के उस विदेशी रंग में ही
रंगना चाहते हैँ जिस में आपकी पीढ़ी की पीढ़ी रंगी चली झा
रही है, जो पीढ़ी होटल में बेठकर द्वराब पीने में, रात को देर
तक जागने में, और देर रात गए तक ताश खेलने में ग्रभी
भी अपना गौरव समभती है।”
मैने उस समय नयौ पीठी की इस नन्ही सी सदस्या को
देखा । जैसे गति साकार हो उठी थी । वह् ग्रावेश में नहीं थी,
उसका मुख शान्त था। भाभी चुप खड़ी थी जैसे उन्हें सांप सू घ
गया हो । मनोरमा ने भ्रांखें श्रपती मां पर गड़ा दीं और एक
क्षण बाद तेजी से बाहर चली गयी । रात भर वह लौटी नहीं,
सड़कों पर घूमती रही । राधा भाभी ने अ्रपना सिर पीट
लिया ।
“मधु, देखा तुमने, मेरा तो भाग्य फूट गया है । यह् कंसी
अजीब लड़की है। दूसरों की भी लड़कियां हैं, गहने और कपड़े
को तरसती हैं। इन मेम साहिब को मा मूली सूती साड़ी चाहिये,
जेवरों से जैसे जन्म का बैर है। इसकी आयु की सब लड़कियां,
अच्छा खाती हैं, ढंग से सभा सोसायटी में आती जाती हैं । इस
जैसा पागल तो मैंने कोई देखा नहीं । भाड़े का कास्वैन्ट से नाम
कटवा कर किसी हिन्दी स्कूल मेँ भर्ती करवा दिया है। मुझे तो
उसका भविष्य भी अंधियारा ही दीखता है ।”
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