आर्य जीवन | Aarya - Jivan

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Aarya - Jivan by श्री जैनेन्द्र कुमार - Mr. Jainendra Kumarश्री नीलकंठदास - Shri Nilkanthdas

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श्री नीलकंठदास - Shri Nilkanthdas

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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ह सूचना ' थ समस्त योरोप की भवस्थां भी यही है। एक समय था जब प्राचीन ग्रीस के आदशं से यह समस्त भूखंड व्याप्त था। किंतु आज योरूप में चहठ आदर्श नहीं है । यीशु धर्म के व्यापक प्लावन में साक्रटीज़ प्लेरो, भरिस्टोटल आदि प्राचीन श्रीक दार्धनिकों के समय का जातीय दा. यूरोप मे अतर्हित हो गया । प्राचीन स्पार्ट के उस. सरल जीवन एुथेंस की उस महत्व और मौलिकता, प्लेटो के प्रचारित. राज्यतंत्र भर शिक्षाविधान के उस अलौकिक भादर्श-आदि से गठित योरोप का जातीय जी यन भय परम्परा में जीवित नहीं है। नव-धर्म-दीक्षा के फलस्वरूप भाव दिपयंय गोथ्नेंटल भादि जीतने वाली जातियों के प्रभाव भर शेषत यूटनों की नव जातीय दीप ने योरोप की प्राचीन सभ्यता को परस्पर: ने विनष्ट कर दिया । जीवन का यह प्राकृतिक विकास चर्डिप्णु भाव से लान योरोप के जातीय भादुर्शं को प्रभावित नहीं करता । कर्पना फीजिये एक जगह एक पेड़ उगा। उसपेढ़ ने उस मूमि से रस खींच कर, उसी जल वायु में बढ़ कर, उसी भ्रूमि की प्राकृतिक सुविधा-अलुविधा में रह कर अपना जीवन रक्‍्खा । किसी. आदमी के मत- -ठय-वेमतरुत्र उस वक्ष को नप्ट कर, उसी स्थान पर उसी भन्न-जरू बायु में किसी और वक्ष की पौध या कलम लगा देने .से वहां रुक नया चक्ष दो जाता है । चह नपा वक्ष इष्ट पुर होकर बढ़ सकता है, लेकिन वह उस भूमि. का स्वाभाविक वृक्ष नहीं है । उस नूतन वृक्ष में स्वाभाविक चूक्ष की प्रकृति भौर प्राचीनता नहीं है। देश-विशेष की सभ्यता को भी इसी तरदद एक वक्ष के सानिद कट्पना कर लोजिये । नवीन वृक्ष की तरह ऐ्रथ्वी के भम्यान्य देशों की सम्यता बहुत उन्नत हो सकती है, किन्तु वह नवरोपित सभ्यता उन देशों की मौलिक सभ्यता नहीं है। आय॑ सभ्यता कौ




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