जैन जगत् | Jain Jagat
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
36 MB
कुल पष्ठ :
623
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
(Click to expand)४]
गाजनेनिक हृष्टिसे खियोंकि अधिकार मन्त
ही समाजमें नीचे रहे हों. परन्तु जनघर्म उस
विपमताका समर्थक नहीं था | यह बान दमम.
है कि उसके कथा स्ाहित्यमें स्वाभाथिक चिहुण
के कार ण विपप चित्रा हुआ हो. परन्तु धामक का
हण्िसे बह समलाका ही समर्थक रहेगा। इस-
सिये आ मदयन मुनियोके छिये थे, वे ही आ-
ननजगन्
यिक्राआंके सियिभीय। दसीप्रकार जो अण्यु्त
आ्रावकांके लिये थ वे ही आाविकाओंके लिये भी
थे। मुनि ओर आर्यिकाओं की बराबरी तो निविवाद
मानी ज्ञासकती है! उस्तका सामाजिक नियर्मा .
লগ নরা লালা । নন क्रावकाओक विपय
में यह नहीं क
स्त्रियों को रखकर भी त्रह्मचयाणबती कहत्टाना
चाहता है और वेश्यासेवन करके सिरफ़े अरुवत
आतेशार मानना चाहता है. न कि अनासार
जबकि शाविका के लिये बहुत ही कटार छाते हैं ।
जनधर्म इस विषमताका समर्थन नहीं करस्तकता।
1 ज्ञासकता | श्रायक् ना कहां :
उसकी दृष्तिमें दोनों एक समान हैं. इसलिये .
दोनों अणुत्तत भी एक सरीखे
हैं। उपासक ,
देशामें उपासिकाओंके वर्णनमें, सम्भव है, एसे .
' अध्ययन नए कर दिये गये या नष्ट होगये ।
खिघण आय हों जो भगवान महावीर के जेन-
धर्मक अनुकु किन्तु प्रचलित लोकब्यवहारके
प्रतिकूल हाँ इसलिये उपासिकाओंके चरित्र न '
ग्हन दिये हों ।
यहाँ पक प्रश्न यह होता हे कि जन छा: स्प्रों
सं भन्य ग्रा पुन्पोक चरित्र प्रक सरीख मिलने
हैं | उदाहरणार्थ 'णायधम्म कहा' के अपर कंका
अध्ययनमं द्रीपदीन पोच पतियोंका वरण किया,
यह तात चष स्पष्ट रूप आर विलकन्त
[ यथे ६ अक १
यह परश्च बिलकुल निज्ञोण नहों है. परन्तु
इसका समाधान भी शो खकता है। भे कहचुका
हू कि 'णायघम्मकहा' में क्रिपी एक तको
लच्यमें लेकर एक कथा दृष्टान्तरूपमें उपस्थित
की जाती है। उस कथाके अन्य भार्मोसे विशेष
मतलब नहीं रक़खा जाता है, परन्त वह कथा
जिस वानका उदाहरण है उसीपर ध्यान लिया
জালা है | अपर कंका अध्ययनका নন निदान
की निन्दरा करना ६ टै अथवा बुरी वस्तुका बुरे
ढंगसे दान देनेका कुफल बतलाया है। इसलिये
पच परनियाली वात प्रकर णवाह्य या लक्ष्यबाश
कटकर टाठी जा सकती है, या लोकानाग्की
दुह्ाई देकर उड़ाई जारकती है | परन्त अगर
' उपासक दशा में हो तो चटां वह
अगं डपा-
यही कथा
मुख्य थात बन जायगी, क्याँफि यह
(चारका परिचय देनके लिये ह
सवक
भी हो, परन्त यहा बात निश्चित है कि
“डपासक दश्शा' में उपासिकाओं के अध्ययनों की
आवश्यकता है ओर सम्भवतः पहिले इस अर
में उपासिकाओंके अध्ययन भी हांगे। पीछे
किसी अनिश्चित या अधेनिश्चित कार्णसे ये
८-अतकूदशा---इस अगमं मुक्तिगामिर्यो
की दशाक। वणन है | दिगम्बर सम्प्रदायके अ-
: नुसार इसमें सिर्फ उन मुनियोंका ही वर्णन है
निः- |
संकाय मचस कही गई है | एसी टालनमे 'उ '
पासकदशा' प्र॑ भी यदि एस्ा चर्णन कदाविन्
था यो पके टटानिकी कय ज़रूरत थी ?
जिनन दास्ण उपमाता सेद्रकर मोक्ष णप्त |
( सुब/पि तवकिस्टसों नियाणदोस्रेण दु सिओ सत्तो ।
ने सिव्रय दोदताए जह कल सुकुमाव्आ जम्मे ॥
অবতদদ্নল ল্যান भत्र अणत्थाय ।
पत्ते दाण
जष्ट ब्ुय तुबदाण नागसिरि भवस्मि दोचहए ॥
--णा० च० कहा ५६ अध्ययन अमयदेव टीका |
; मसारस्य पमः कृतो र ग्तेऽ-तकृतः नमि म्रा
द्रव्यते दका वव्रमान तीथकर तीयं] एव्
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संमिल **
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