कैदी कविराय की कुण्डलियां | Kaidi Kaviraay Ke Kundaliyaan

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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मव जो पुटक चा र्दा ट, भाय व= गणिताय दृणि म स श नहा, वर सच्चाद बुछ-मुछ एमी ही ह। व आये राजनता है जाधे बवि है और आये सप्रसामा य “यविति। वायद स तीय आधा या याग इताई से ज्याटा हाना बाहिए था परयु जटवजी व मागव में यह धरत পিলার नी जाधा ही बनता है। जौर মহ अधूरापन তনবাত্তিস্মীক্ী গন বলা सच्चाई ह एवं पद पूजी भी है । यट जतग बात है ति उतत जवूरपन না सामन जार पूरे मी वौत परत है, लबिस बाधेन का राका ण्न उनवी पूणता वी बचनी वो भा बनाए रखता है। व जपा अधूरपा था शालांने उत्घाटन यावो जवसर शायर हा बभा हाथ स जान दत हो । वटे सिक विनम्रता ही नही द्वाता है एहसास का इमानटारी भा हाता है। उनवा यह अधरशपन दश वे जासामाय वे जघूरेपन की व्यक्तिगत पहचान और आत्मगत समानुभूति है। उस ही व अपन भाषणा मे बविहत्य দী पालालकरमाणी टत है। परिणाम यह हांता है वि उाक्ा राजनता भा अधरा रह जाता है। राजनतिक शतरज विछायर मनुष्य निखधहार चास चलन व चलन वात राजननिर युग मे राजनता अटलजा भा आधा हाना ही श्रयस्व र है भाषणा, लेखा जोर बबिता मं अटलजी प्रथा वित्प्ट हिंदी यहां लिपत। उनव॑ लिए वितप्टता स वचना एकं तरट्‌ स विदरत्ता बाद स॒ बचे के अलावा पूरी निप्ठा स जनसाधारण रा भाषायी सामीष्य को आरावना वरना है। মুন বলয় সনণ মাহ ধ,অব নং লিণ বিমা दस्तावजु से उ ट বি ঘ » बाठवर एवज म सरल श > टा एन म नगरकार जणमय शब्द भा चला आए ता भी जनसामा-य वी सामीष्य जाराधना व जिए वह भदलजी क्‌ लिए वरण्य हाता है। यह अलग वात है वि उन द्वारा प्रयुन्त सि पिट रक सा+ उनम जथ मत विद्राहु करत हैं और शब्दा वी শখ सीमा क पर भी फ्ल जात है, खास कर भाषणा मे । सयुवत राष्ट्र सध मे एआ उनका पहला हिंदी भाषण इस बात वा प्रमाण है कि उनकी सरत भाषा मे गम्भीर जोर जटित अर्थों का पूरी क्षमता जौर साथवता वः साथ वटन करन की पात्रता हाती है। बटलजौ की तक्षणा मौर व्यजनाभा अभिधामुयी होती है । ही वात दस मन्यन मौ बुण्दलिया बी भाषा व साद्‌ বসু সানী हैं। जहा तक इन कुण्डलिया का सवाव है ये बाल व नाम उफ वचनी वा पुरक्र शिशायता दस्ताउज 6 । इसमे व्यग्य है पर वड़ता नहा, इमन्‌ उण्टनो बजेबर पुराता हे पर ्गकां तत्राय अपुनत है। इसका भादार सूल्म है. पर समय वा विराट प्रश्या पर वुगकों पर पूरी और




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