आधुनिक विचार और शिक्षा | Aadhunik Vichar Aur Shiksha

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Aadhunik Vichar Aur Shiksha by नंदकिशोर आचार्य - Nandkishor Aacharya

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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आधुनिक दा्शनिकता की आधार-भूमि 13 मनोवैज्ञानिक दृष्टि स यह विलकुल सम्भव है कि इस निरन्तर अनिश्चयात्मकता से उकताकर या घवराकर कुछ मन प्राचीन, मध्यकालीन या किसी प्रकार की नयी निश्चयात्मक्ता की ओर उन्मुख हो | विज्ञान के अधूरेपन की आलोचना करते हुए कुछ लोग उसी आधार पर फिर कसी न किस प्रकार की भोतिकवादी या रहस्यवादी निश्वयात्मकता म अपना आश्रय तलाश करने लग सकते है तो बुछ लोग किसी न किसी दार्शनिक प्रणाली को अन्तिम मानवर उसी के आधार पर विज्ञान की नवीनतम शोध भौर उसके निष्को की व्याख्या मरना चाह सकते है । लेकिन यदि मानव और प्रक्ृति के बारे म, ज्ञान की प्रक्रिया वे बारे में हमारा ज्ञान अभी अधूरा है तो यह स्वीकार कर लेना अधिक तकंसगत है कि इस अधूरे ज्ञान पर आधारित दर्शन भी अधूरा ही हो सकता है। हम वापस लौट जाते बे' लिए भी स्वतत्न हैं ओर अभी यह भी निश्चयपूर्वेक नही कहा जा सवता कि यह्‌ लौट जाना सदौ होगा या गलत विन्तु इस निश्चय ही आधुनिक दार्शनिकता नहीं कहा जा सकता, कम स कम अभी तक तो नहीं। आधुनिक दाशनिक्ता वा शस्‍्ता मातववाद और वैज्ञानिक्ता स होकर गुजरताहै मौर इसलिए सभौ भाधुनिन दर्शनों म इन दानो प्रवृत्तियों का प्रभाव बराबर महसूस हांता है--चाहे उनके निष्कर्पों की दिशाएं भिन्‍न ही क्यो न हो। इस दाशनिक मानसिकता का स्तामाजिक प्रतिफलन भी बहुत स्पष्ट है। अनिश्चयात्मक मानसिकता का सामाजिक प्रतिफ्लन सदैव मानवीय स्वतन्त्रता भर लोकतान्त्रिक प्रवृत्ति के विकांस की ओर ले जाता दीखता है जबकि निश्चयात्मक स्वरूप ग्रहण कर रही दाशंनिक प्रणालियों का सामाजिके प्रतिफलन परोक्ष या प्रत्यक्ष स्तर पर किसी न किसी प्रकार के सर्वसत्तावाद की ओर उन्मुख होता दीखता है। दूसरे शब्दों म, सर्वसत्तावाद मानसिक तोर पर एक पुरातन या मध्यकालीन विज्ञान निरपेक्ष प्रवृत्ति है जवकि লীক্ষলল্স की प्रवृत्ति अधुनातन वैज्ञानिक मानसिकता द्वारा पुष्ट होती दियाई पडती दै!




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