बंसी की धुन | Bansi Ki Dhun

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Bansi Ki Dhun by ओंकार नाथ शर्मा - Omkar Nath Sharmaकन्हैयालाल मुन्शी - Kanaiyalal Munshi

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ओंकार नाथ शर्मा - Omkar Nath Sharma

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कन्हैयालाल माणिकलाल मुंशी - Kanaiyalal Maneklal Munshi

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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश

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वच्चुदेव और देवकी १५ स्वत्पवा्े थे और उनकी कीति अक्षय व अनन्त काछ तक स्थिर रहने वादी थी) वसुदेव के पाँच बहने थौ । उनमें से एक--पृया को वुन्तीमोज হাসা ने दत्तफ़ छिमा । उसा विवाह हस्तिनापुर के राजा पाण्दु से हुआ और बह पाँच पाण्डवों में से तीन की मात्ता बनी । वसुदेव की दूसरी बहन श्ृतश्रवा में चेदिराज का धरण किया और उसकी कोस से शिघ्रुपाठ का जन्म हुआ । वसुदेव वीर शूरवश्चियो कै अग्रणी थे भौर अनेक गोझुछो के स्वामी ये । किन्तु अन्धक वश उनसे भो अधिक प्रतापी था भौर उसे भ्रग्रणी राजा उमप्रसेव उसके नायक थे। उग्रसेन के पांच पुत्र और ती पुत्रियाँ थी । सबसे बड़े पुत्र का नाम कस था । राजा उम्रसेन के भाई देवक के चार पुत्र और सात्त परन्नियाँ थी, जिनमे से देवकी परम रूपवान थी । शूरौ ओर अन्धको के थीच प्रायः झगड़े हुआ करते । उनके खाठो के वीच रोज मारपीट होती | आसिर, दीनों कुलो के मुसियाओ ने इचय किया फ़ि इन ज्गड़ों का अन्त करने के लिए गूरथेप्ट वसुदेव का देवकी से विवाह कर दिया जाएं। राजा उम्रसेन ने बडी धूमधाम से यह ब्याह रचाया । बसुदेव और देवकी ने बेदी के आसपास सप्तपदी की विधि सम्पन्न बी । चन्द्रमुपी देवकी का जब पाणिग्रहण हुआ तब इस शुभ प्रसंग पर शत और दुन्दुभि के जयघोष हुए । यादवों के हर्प का पार नहीं था। ऐसे सुयोग्य दम्पति का समोग उन्हें सौभाग्य से ही देखते को मिला था ।




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