जातक [द्वितीय खण्ड] | Jaatak [Dwitiya Khand]
श्रेणी : साहित्य / Literature
लेखक :
Book Language
हिंदी | Hindi
पुस्तक का साइज :
27 MB
कुल पष्ठ :
478
श्रेणी :
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पुस्तक का मशीन अनुवादित एक अंश
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विषय
पृष्ठ
१७९. सतथस्म जातक... .. २३७
[ ब्राह्मण ने पहले अपने ऊँचे कुल के श्रभिमान के
कारण चाण्डाल का दिया भात खाने से इनकार किया ।
. पीछे जोर की भूख लगने पर चाण्डाल से छीन कर
उसका जूठा भात खाया। |
१८०. दुंद्दर जातक व «« २४०
[ कठिनाई से दिया जा सकने वाला दान देने की
महिमा । |
४. असदिस वरे २४४
१८१- असदिस जातक श वः ०» २४४
[ श्रसदिस राजकमार की विलक्षण धनुविद्या । |
१८२. सद्धममावचर जातक 8 ,,„ २४६
[ हाथी-शिक्षक ने मंगल-हाथी को बढ़ावा दें संग्राम
जीता । |
१८३. वाछोदक जातक ४ ৫ ১ হুম
| सिन्धुकूल में पेदा हए घोड़े भ्रगूर का रस पीकर
दान्त रहे । बचे कसेले रस में पानी मिलाकर गधों को
पिलाया गया ! वह् उद्धलने-कूदने लगे । ]
१८४. गिरिदत्त जातक कि २५७
[ शिक्षक के लंगड़े होने से घोड़ा लेगड़ाकर चलने
लग गया । |
१८९. भ्रनभिरति जातक . . হই
[ चित्त की भ्रस्थिरता मन्त्रों की विस्मृति का कारण हुई |]
१८६- दधिवाहन जातक... २६२
[ दधिवाहन राजा ने मणि-खण्ड, छुरी-कुल्हाड़ी
+> ठोल तथा दही के घडे कौ मदद से वाराणसी के राज्य ^
पर अधिकार किया । ]
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